आमलकी एकादशी फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनायी जाती है। आँवले के वृक्ष में भगवान का निवास होता है। इसलिए इस दिन आँवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान का पूजन किया जाता है।
कथा : प्राचीन काल में भारत में चित्रसेन नाम का राजा हुआ था। उनके राज्य में एकादशी व्रत का प्रचलन था। प्रजा एवं राजा एकादशी का व्रत रखते थे।
एक दिन राजा चित्रसेन शिकार खेलते-खेलते वन में बहुत दूर निकल गए। वहाँ पर जंगली जातियों ने उनपर आक्रमण कर दिया। उनके अस्त्रों शस्त्रों का उनपर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। यह देखकर जंगली चकित रह गए। देखते-देखते जंगली जाति के आदमियों की संख्या बढ़ गई तो उनके आक्रमण से राजा चित्रसेन संज्ञाहीन होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। पृथ्वी पर गिरते ही राजा के शरीर से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई जो समस्त राक्षसों को मारकर अदृश्य हो गई।
जब राजा की मूर्छा टूटी तो उन्हें सब राक्षस मृत पड़े दिखाई दिये। वे बड़े आश्चर्य में पड़कर सोचने लगे कि इन्हें किसने मारा है तभी आकाशवाणी हुई, “ये समस्त राक्षस तुम्हारे आमला एकादशी व्रत के प्रभाव के कारण मारे गये हैं।’
यह सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ तथा अपने राज्य में उसने आमला एकादशी के व्रत का प्रचार करवाया।