पौष माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहते हैं। इसका व्रत करने से सारे कार्य सफल हो जाते हैं।
इस व्रत को करने वाले को प्रातः स्नान करके भगवान अच्युत की आरती करें तथा भोग लगावें। अगरबत्ती, नारियल, सुपारी, आँवला, अनार तथा लौंग से पूजन करें। दीपदान और रात्रि जागरण का बड़ा माहात्म्य है।
कथा : राजा महिष्मत के चार बेटे थे। छोटा बेटा ल्युक बड़ा दुष्ट और पापी था। वह पिता के धन को कुकर्मों में नष्ट करता रहता था। दुःखी होकर राजा ने उसे देश निकाला दे दिया। परन्तु उसकी लूटपाट की आदत न छूटी। एक बार उसे तीन दिन भोजन नसीब नहीं हुआ। वह भोजन की तलाश में एक साधु की कुटिया पर पहुँच गया। उस दिन “सफला एकादशी” थी। महात्मा ने उसका मीठी वाणी से सत्कार किया तथा खाने के लिए भोजन दिया।
महात्मा के इस व्यवहार से उसकी बुद्धि परिवर्तित हो गई।
उसने सोचा मैं भी मनुष्य ही हूँ। कितना दुराचारी और पापी। साधु के चरणों पर गिर पड़ा। साधु ने उसे अपना चेला लिया। धीरे-धीरे उसका चरित्र निर्मल होता गया। अब उसमें कोई ऐब नहीं रहा। वह महात्मा की आज्ञा से “एकादशी” का व्रत करने लगा। जब वह बिल्कुल बदल गया तो महात्मा ने उसके सामने अपना असली रूप प्रकट कर दिया। महात्मा के वेश में उसके सामने उसके पिता खड़े थे।