अहोबिलम मंदिर
मंदिर के बारे में
अहोबिलम: एक पवित्र तीर्थस्थल का परिचय
अहोबिलम, भारत के आंध्र प्रदेश राज्य के नंद्याल जिले के अल्लगड्डा मंडल में स्थित एक प्राचीन तीर्थस्थल और ऐतिहासिक नगर है। यह स्थान पूर्वी घाट की पर्वत श्रृंखलाओं और गहरी घाटियों से घिरा हुआ है। अहोबिलम भगवान नरसिंह, जो भगवान विष्णु के आधे सिंह और आधे मानव अवतार हैं, की पूजा का प्रमुख केंद्र माना जाता है। उनके साथ देवी प्रत्यंगिरा (जो देवी लक्ष्मी का ही एक रूप मानी जाती हैं) की भी उपासना की जाती है। यह स्थान नौ महत्वपूर्ण नरसिंह मंदिरों में से एक है, जो इस देवता को समर्पित हैं।
अहोबिलम दो भागों में विभाजित है—निचला अहोबिलम और ऊपरी अहोबिलम। निचले अहोबिलम में मुख्य गांव और मंदिर परिसर स्थित हैं, जबकि ऊपरी अहोबिलम लगभग 8 किलोमीटर पूर्व की ओर एक गहरी और दुर्गम घाटी में स्थित है। यहां भगवान नरसिंह के और भी कई प्राचीन मंदिर बने हुए हैं।
अहोबिलम का ऐतिहासिक महत्व
16वीं शताब्दी से पहले अहोबिलम का विस्तृत ऐतिहासिक विवरण उपलब्ध नहीं है। हालांकि, 9वीं शताब्दी में तमिल संत तिरुमंगई आलवार द्वारा रचित धार्मिक ग्रंथ पेरिय तिरुमोळी में अहोबिलम का उल्लेख मिलता है। इस कारण इसे 108 दिव्य देशमों (विशिष्ट वैष्णव तीर्थस्थलों) में शामिल किया गया।
12वीं से 16वीं शताब्दी के बीच अहोबिलम का उल्लेख संस्कृत और तेलुगु साहित्य में मिलता है। इसके अतिरिक्त, यहां मिले अभिलेखों और शिलालेखों से यह ज्ञात होता है कि 13वीं और 14वीं शताब्दी में काकतीय और रेड्डी राजवंशों ने इन मंदिरों को संरक्षण प्रदान किया था।
लेकिन अहोबिलम का स्वर्णिम काल विजयनगर साम्राज्य के दौरान आया। 15वीं शताब्दी में सालुव वंश के शासकों ने इस तीर्थस्थल को समृद्ध किया और 16वीं शताब्दी में तुलुव वंश के राजाओं ने इसका और विस्तार किया। प्रसिद्ध विजयनगर सम्राट कृष्णदेवराय स्वयं अहोबिलम आए थे और यहां के मंदिरों को संरक्षण दिया था।
माना जाता है कि अहोबिला मठ (Ahobila Matha) की स्थापना भी इसी समय के आसपास हुई थी, हालांकि इसकी सही तिथि को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ इसे 15वीं शताब्दी तो कुछ इसे 16वीं शताब्दी की शुरुआत का मानते हैं।
विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद अहोबिलम को राजकीय संरक्षण मिलना बंद हो गया। 1579 ईस्वी में गोलकुंडा सल्तनत के सेनापति मुरहारी राव ने इस तीर्थस्थल पर आक्रमण किया और यहां के मंदिरों को लूटा। मुख्य मंदिर से बहुमूल्य आभूषणों से सुसज्जित प्रतिमा को निकालकर गोलकुंडा के सुल्तान को भेंट कर दिया गया।
मंदिरों की संरचना और धार्मिक महत्व
अहोबिलम में भगवान नरसिंह के दस प्रमुख मंदिर स्थित हैं। इसे मुख्य रूप से ऊपरी अहोबिलम और निचले अहोबिलम में बांटा गया है। ऊपरी अहोबिलम का क्षेत्र घने जंगलों और घाटियों में फैला हुआ है, जहां नौ अलग-अलग मंदिर भगवान नरसिंह के विभिन्न स्वरूपों को समर्पित हैं। ये स्वरूप इस प्रकार हैं—
- अहोबिल नरसिंह
- भार्गव नरसिंह
- ज्वाला नरसिंह
- योगानंद नरसिंह
- छत्रवात नरसिंह
- करंज नरसिंह
- पावन नरसिंह
- मालोल नरसिंह
- वाराह नरसिंह
इनमें से अहोबिल नरसिंह मंदिर को सबसे प्राचीन माना जाता है, जो भगवान नरसिंह के उग्र (भयावह) स्वरूप को समर्पित है।
निचला अहोबिलम मुख्य रूप से जनसंख्या से घिरा हुआ क्षेत्र है। यहां का सबसे प्रमुख धार्मिक स्थल प्रह्लादवरद मंदिर है। इसका निर्माण 16वीं शताब्दी में किया गया था। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण विजयनगर सम्राट सालुव नरसिंह देव राय के शासनकाल में आरंभ हुआ था।
यह मंदिर भगवान नरसिंह के सौम्य (शांत) स्वरूप को समर्पित है और इसे अहोबिलम का अंतिम निर्मित मंदिर माना जाता है। अहोबिलम में मिले अधिकांश शिलालेख इसी मंदिर से जुड़े हुए हैं।
अहोबिलम का आध्यात्मिक महत्व
अहोबिलम को वैष्णव परंपरा में अत्यंत पवित्र तीर्थस्थल माना जाता है। इसे भगवान नरसिंह की वास्तविक लीलाभूमि कहा जाता है, जहां उन्होंने भक्त प्रह्लाद की रक्षा करने के लिए हिरण्यकश्यप का वध किया था।
यह स्थान केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य और ऐतिहासिक धरोहर के रूप में भी महत्वपूर्ण है। ऊंचे पहाड़, हरी-भरी घाटियां और मंदिरों की वास्तुकला इसे एक दिव्य आध्यात्मिक स्थल बनाती हैं।
आज भी हजारों श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं, विशेषकर नरसिंह जयंती और अन्य वैष्णव पर्वों के अवसर पर। अहोबिलम की यात्रा न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करती है, बल्कि यह एक रोमांचक और ऐतिहासिक अनुभव भी देती है।
निष्कर्ष
अहोबिलम, भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक अमूल्य रत्न है। यह स्थान न केवल भगवान नरसिंह की भक्ति का केंद्र है, बल्कि इसकी ऐतिहासिक और स्थापत्यकला की समृद्धि इसे और भी विशेष बनाती है। विजयनगर साम्राज्य से लेकर वर्तमान समय तक, यह स्थल अपनी धार्मिक महिमा और पौराणिक महत्व के कारण श्रद्धालुओं को आकर्षित करता आ रहा है।
यदि आप कभी आध्यात्मिक शांति की खोज में हों, तो अहोबिलम अवश्य जाएं—यह स्थान आपको भक्ति, इतिहास और प्रकृति की अनुपम सुंदरता का अनूठा संगम प्रदान करेगा।