मंदिर के बारे में
वास्तुकला
चालुक्य शैली
संस्थापक
चन्द्र देव
स्थापना
सतयुग
देख-रेख संस्था
श्री सोमनाथ ट्रस्ट गुजरात
मंदिर के बारे में
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल समुद्र के किनारे सोमनाथ नामक विश्व प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। बारह ज्योतिर्लिंगो में से सबसे प्रथम सोमनाथ को माना गया है। ज्योतिर्लिग उन स्थानों को कहते है जहां पर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे आदिदेव महादेव ने मनुष्य हो या देवता सभी को अपना आशीर्वाद दिया एव अनंतकाल के लिए लिंग में विराजमान हुए।
वर्तमान समय में बना सोमनाथ मंदिर देश की आज़ादी के बाद सरदार वल्लब भाई पटेल जी द्वारा बनवाया गया है। इससे पहले इतिहास में यह मंदिर कई बार बनाया गया था और उसे हर बार किसी मुस्लिम शासक ने तोड़ दिया।
सोमनाथ मंदिर की धार्मिक महत्ता
स्कन्द पुराण के प्र्भास खंड में उनकी कथा का संदर्भ मिलता है। कथा इस प्रकार है: चंद्रमा ने दक्ष की 27 पुत्रियों से विवाह करके एक मात्र रोहिणी में इतनी आसक्ति और आनुराग दिखाया कि अन्य 26 अपने को उपेक्षित और अपमानित अनुभव करने लगी। उन्होने अपने पति से निराश होकर अपने पिता से शिकायत कि तो पुत्रियों कि वेदना से पीड़ित दक्ष ने अपने दामाद चंद्रमा को दो बार समझने का प्रयास किया परन्तु विफल हो जाने पर उसने चंद्रमा को ‘क्षयी’ होने का शाप दिया।
फलत: चंद्रमा क्षयग्रस्त हो गए। चांद न होने से रात नहीं हुई और सृष्टि का कार्य रुक गया। चराचर में चारों ओर त्राहि-त्राहि की पुकार होने लगी। चंद्रमा के प्रार्थनानुसार इंद्र आदि देवता तथा वसिष्ठ आदि ऋषि-मुनि कोई उपाय न देख पितामह ब्रह्मा की सेवा में उपस्थित हुए। ब्रह्मदेव ने यह आदेश दिया कि चंद्रमा देवादि के साथ प्रभास तीर्थ में मृत्युंजय भगवान की आराधना करे, उनके प्रसन्न होने से अवश्य ही रोग मुक्ति हो सकती है।
पितामह ब्रह्मा की आज्ञा ले कर चंद्रमा मृत्युंजय भगवान शिव की अर्चना का अनुष्ठान आरंभ कर दिया। मृत्युंजय मंत्र से पूजा और जप होने लगा। 6 मास तक निरंतर घोर तप किया, फलत: आशुतोष संतुष्ट हुए। प्रकट होकर वरदान देकर भगवान शिव ने मृत तुल्य चंद्रमा को अमरत्व प्रदान किया और कहा, सोच मत करो। कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी एक-एक कला क्षीण होगी, पर साथ ही शुक्ल पक्ष में उसी क्रम में तुम्हारी एक-एक कला बढ़ जाया करेगी और इस प्रकार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम पूर्ण चंद्र हो जाया करोगे।
सोमेश्वर से सोम, चंद्रमा कि ही पहचान का नाम बना। इसलिए यह ज्योतिर्लिंग सोमनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
सोमनाथ मंदिर का इतिहास
विदेशी आक्रमण कारियों ने इसके वैभव से प्रभावित होकर अनेक बार इस मंदिर को लूटा और ध्वस्त किया।
सोमनाथ मंदिर पहली बार किस समय में बना इसके बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है पर फिर भी यह जानकारी जरूर प्राप्त है कि 649 ईसवी में इसे वैल्लभी के मैत्रिक राजाओं ने दुबारा बनवाया था। इस मंदिर को 725 ईसवी में सिंध के मुस्लिम सूबेदार अल – जुनैद ने इसे नष्ट करने के लिए अपनी सेना भेजी। 815 ईस्वी में गुर्जर प्रतिहार राजा प्रतिहार राजा नागभट्ट ने इस मंदिर को दुबारा बनवाया। इस मंदिर की प्रसिद्धि दूर – दूर तक फैली थी। यह अपनी धन – संपदा के लिए बहुत प्रसिद्ध था। सन 1024 ईस्वी में महमूद ग़ज़नवी ने अपने 5000 साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया और 25 हज़ार लोगों को कत्ल करके मंदिर की सारी धन – दौलत लूट के ले गया।
इसके बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया। सन 1297 में जब दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर क़ब्ज़ा किया तो इसे पाँचवीं बार गिराया गया। मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे पुनः 1706 में गिरा दिया।
इस समय जो मंदिर खड़ा है वर्तमान भवन के पुनर्निर्माण का आरंभ भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाया और पहली दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया।
भारत का यह ज्योतिर्लिंग असख्या भक्तों श्रद्धा का स्थान है।
सोमनाथ मंदिर की वास्तुकला
वस्तुकला- उत्खनन से प्राप्त हुए ब्रहमशिला पर शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के दक्षिण में समुंदर के किनारे स्तंभ है जिसे बाणस्तंभ कहते हैं। इसके ऊपर तीर रखा गया है जो यह दर्शात है कि सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच पृथ्वी का कोई भाग नहीं है। यहाँ पर तीन नदियों हिरण कपिला और सरस्वती का संगम है और इस त्रिवेणी में लोग स्नान करने आते हैं। मंदिर नगर के 10 किलोमीटर में फैला है और इसमें 42 मंदिर है। मंदिर को गर्भगृह, साभमंडप और नाटमंडप में विभाजित किया गया है। इसके शिखर की ऊँचाई 150 फीट है और इसके उपर स्थित कलश का वजन 10 टन है और इसकी ध्वजा 27 फीट ऊँची है।
सोमनाथ मंदिर के कुछ रोचक तथ्य
- आपको यह जानकर हैरानी होगी कि सोमनाथ मंदिर में स्थित शिवलिंग में रेडियोधर्मी गुण है जो जमीन के ऊपर संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। इस मंदिर के निर्माण में पांच वर्ष लग गए थे।
- मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे एक स्तंभ है जिसे बाणस्तंभ के नाम से जाना जाता है। इसके ऊपर तीर रखा गया है जो यह दर्शाता है कि सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच पृथ्वी का कोई भाग नहीं है।
- सोमनाथ मंदिर को महमूद गजनवी ने लूटा था जो इतिहास की एक प्रचलित घटना है। इसके बाद मंदिर का नाम पूरी दुनिया में विख्यात हो गया।
- यह मंदिर रोजाना सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है। यहाँ पर रोजाना दिन में तीन बार (सुबह 7, दोपहर 12 और शाम 7 बजे) आरती की जाती है।
- मंदिर परिसर में रात 7:30 से 8:30 तक एक घंटे का साउंड एंड लाइट शो चलता है।
- मंदिर से लगभग 200 किलोमीटर दूरी पर भगवान् श्रीकृष्ण की द्वारिका नगरी है। यहां प्रतिदिन द्वारिकाधीश के दर्शन के लिए देश-विदेश से हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
- इस क्षेत्र को पहले प्रभासक्षेत्र के नाम से जाना जाता था। भगवान् श्रीकृष्ण ने इसी स्थान पर जरा नामक व्याध के बाण को निमित्त बनाकर अपनी लीला का संवरण किया था।
- मन्दिर परिसर में गणेशजी का भी एक मन्दिर है और उत्तर द्वार के बाहर अघोरलिंग की प्रतिमा स्थापित की गई है।
- प्रभावनगर में अहल्याबाई मन्दिर के समीप ही महाकाली का एक भव्य मन्दिर भी बना हुआ है। इसी प्रकार गणेशजी, भद्रकाली तथा भगवान विष्णु आदि के मन्दिर भी नगर में बने हुए है
- यह मंदिर गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप- तीन प्रमुख भागों में बंटा हुआ है। इसके शिखर की ऊंचाई लगभग 150 फुट है।
- मंदिर के ऊपर स्थित कलश का भार लगभग 10 टन है और इसकी ध्वजा 27 फुट ऊंची है।
- यहाँ पर तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का संगम है और इस त्रिवेणी में लोग स्नान करने आते हैं। मंदिर नगर के 10 किलोमीटर में फैला है और इसमें 42 मंदिर है।
प्रातः काल 6 बजे से रात्रि 10 बजे तक दर्शन
प्रातः 7 बजे मंगला आरती, 12 बजे मध्यान्ह आरती, 7 बजे संध्या आरती
रात्रि 8 बजे से 9 बजे तक जय सोम नाथ दृश्य-श्रव्य कार्यक्रम
वायु मार्ग के द्धारा:
गुजरात के सोमनाथ मंदिर से करीब 55 किलोमीटर दूर स्थित केशोड एयरपोर्ट है, जो कि सोमनाथ मंदिर से सबसे पास है। यह एयरपोर्ट सीधा मुंबई से जुड़ा हुआ है, इस एयरपोर्ट पर पहुंचने के बाद बस और टैक्सी की सहायता से बड़ी आसानी से सोमनाथ मंदिर पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग के द्धारा:
सोमनाथ से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन वेरावल है, जो सोमनाथ से 5 किमी की दूरी पर है। यह स्टेशन मुंबई, अहमदाबाद और गुजरात के अन्य महत्वपूर्ण शहरों से रेलमार्ग द्वारा जुड़ा है। यहां प्रतिदिन 14 जोड़ी ट्रेनें चलती हैं। इसके अलावा पैसेंजर ट्रेनों से भी वेरावल स्टेशन पहुंचा जा सकता है। फिर वहां से आटो, टैक्सी के जरिए सोमनाथ मंदिर जाया जा सकता है।
सड़क मार्ग के द्धारा:
सोमनाथ जाने के लिए बसें सबसे अच्छा साधन है, क्योंकि इसके कई विकल्प उपलब्ध हैं। सोमनाथ कई छोटे शहरों से घिरा हुआ है जो बस सेवाओं, गैर-एसी दोनों के साथ-साथ लक्जरी एसी बसों द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। राजकोट, पोरबंदर और अहमदाबाद जैसे अन्य नजदीकी स्थानों से भी बस द्वारा सोमनाथ जाया जा सकता है। इसके अलावा निजी बसों की भी सेवाएं उपलब्ध हैं।
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सोमनाथ मंदिर, वेरावल, गुजरात
- http://www.somnath.org/