वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग

शिव

मंदिर के बारे में

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श्री बैजनाथ ज्योतिर्लिंग झारखंड राज्य में अति प्रसिद्ध देवघर नामक स्थान पर स्थित है। पवित्र तीर्थ होने के कारण लोग इसे वैद्यनाथ धाम भी कहते हैं। श्री वैधनाथ धाम शिवजी के द्वादश ज्योतिर्लिंगों मे तथा माँ शक्ति के 51 पीठो मे से एक होने के कारण बहुत पर्सिद है। जहाँ पर यह मन्दिर स्थित है उस स्थान को “देवघर” अर्थात देवताओं का घर कहते हैं। बैद्यनाथ ज्‍योतिर्लिंग स्थित होने के कारण इस स्‍थान को देवघर नाम मिला है।

सोमनाथ मंदिर की धार्मिक महत्ता

श्री बैजनाथ ज्योतिर्लिंग के यहां स्थित होने के संबंध में लंकापति रावण से जुड़ी एक कथा बहुत प्राचीन ग्रंथो मे मिलती है। पौराणिक कथा के अनुसार दशानन रावण भगवन शिव को मनाने के लिए हिमालय मे घोर तपस्या की। इसी तपस्या में उन्होंने बार बार अपने शीश को काट कर शिवलिंग पर अर्पण किया पर हर बार शिव कृपा से पुनः शीश रावण के लग जाता | जब यह क्रम दसवी बार दोहराया गया तब तपस्या से संतुष्ट होकर शंकर जी रावण को साक्षात् दर्शन दिए और वरदान मांगने के लिए कहा। रावण ने शिवलिंग के रूप में शिवजी को लंका में ले जाने की बात कही। भोले बाबा तो यह ही भोले , इसलिए झट से रावण की बात मान गये पर यह बात भी कह दी यदि तुमने इस शिवलिंग को धरती पर कही भी उतारा तो यह वही पर स्थापित हो जायेगा। साथ ही साथ उसे दशानन (दस सिरों वाला ) होने का भी वरदान दे दिए।

सभी देवी देवता इस वरदान से बड़े चिंतित थे , वे अच्छी तरह जानते थे की यदि शिवजी के रूप में शिवलिंग लंका में स्थापित हो जायेगा तो रावण और लंका दोनों अजेय हो जाएगी। तब सभी ने यह ठान लिया की कुछ भी हो यह शिवलिंग लंका तक नही जाना चाहिए। इस समस्या के समाधान के लिए सभी भगवान विष्णु के पास गए। तब श्री हरि ने लीला रची। भगवान विष्णु ने वरुण देव को आचमन के जरिए रावण के पेट में घुसने को कहा इसलिए जब रावण आचमन करके शिवलिंग को लेकर श्रीलंका की ओर चला तो देवघर के पास उसे लघुशंका लगी। ऐसे में रावण एक ग्वाले को शिवलिंग देकर लघुशंका करने चला गया. कहते हैं उस बैजू नाम के ग्वाले के रूप में भगवान विष्णु थे. इस वहज से भी यह तीर्थ स्थान बैजनाथ धाम और रावणेश्वर धाम दोनों नामों से विख्यात है. पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक रावण कई घंटो तक लघुशंका करता रहा जो आज भी एक तालाब के रूप में देवघर में है. इधर बैजू ने शिवलिंग धरती पर रखकर को स्थापित कर दिया.

जब रावण लौट कर आया तो लाख कोशिश के बाद भी शिवलिंग को उठा नहीं पाया. तब उसे भी भगवान की यह लीला समझ में आ गई और वह क्रोधित शिवलिंग पर अपना अंगूठा गढ़ाकर चला गया. उसके बाद ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं ने आकर उस शिवलिंग की पूजा की. शिवजी का दर्शन होते ही सभी देवी देवताओं ने शिवलिंग की उसी स्थान पर स्थापना कर दी और शिव-ध्यान करके वापस स्वर्ग को चले गए. तभी से महादेव ‘कामना लिंग’ के रूप में देवघर में विराजते हैं.

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