
मंदिर श्री बृज निधि जी
श्री कृष्ण एवं राधामंदिर के बारे में
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श्री बृज निधि मंदिर: एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक धरोहर
जयपुर के समृद्ध इतिहास में अनेक भव्य मंदिर और धार्मिक स्थल शामिल हैं, जिनमें से एक प्रमुख मंदिर श्री बृज निधि जी का है। यह मंदिर न केवल अपने आध्यात्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके निर्माण से जुड़ी ऐतिहासिक घटनाएँ भी इसे और अधिक विशिष्ट बनाती हैं। इस मंदिर का निर्माण जयपुर के महाराजा सवाई प्रताप सिंह द्वारा संवत 1849 (1792 ई.) में करवाया गया था।
मूर्ति स्थापना एवं मंदिर की विशेषताएँ
मंदिर में भगवान श्री कृष्ण की काले पाषाण से निर्मित दिव्य प्रतिमा विराजमान है, जबकि राधिका जी की मूर्ति धातु से बनी हुई है। इन मूर्तियों की अलौकिक सुंदरता और भव्यता भक्तों को आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है। मंदिर की सेवा-पूजा वल्लभ संप्रदाय और वैष्णव परंपरा की मिश्रित विधि से संपन्न होती है।
मंदिर की स्थापना से एक रोचक घटना जुड़ी हुई है। महाराजा सवाई प्रताप सिंह श्री गोविंद देव जी के अनन्य भक्त थे और ऐसी मान्यता थी कि उन्हें भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन होते थे। उन्होंने कई बार गोविंद देव जी से वार्तालाप भी किया था।
महाराजा सवाई प्रताप सिंह और अवध नवाब की कथा
अवध के नवाब वाजिद अली शाह, जिन्होंने अंग्रेजों के वायसराय की हत्या कर दी थी, ब्रिटिश साम्राज्य के शत्रु घोषित कर दिए गए थे। जब उन्हें भारत में कहीं भी शरण नहीं मिली, तो वे जयपुर पहुंचे। महाराजा प्रताप सिंह ने उन्हें शरण दी और श्री गोविंद देव जी की साक्षी में शपथ ली कि वे नवाब को अंग्रेजों के हाथों नहीं सौंपेंगे।
लेकिन समय बीतने के साथ, अंग्रेजों और जयपुर रियासत के तत्कालीन प्रधानमंत्री दौलतराम हल्दिया के दबाव में आकर, नवाब को एक लिखित समझौते के तहत अंग्रेजों को सौंप दिया गया। जैसे ही यह घटना घटी, यह माना गया कि श्री गोविंद देव जी ने महाराजा को दर्शन देना और उनसे वार्तालाप करना बंद कर दिया। इससे महाराजा अत्यंत दुखी हो गए और उन्होंने अन्न-जल त्याग दिया।
स्वप्न में भगवान का निर्देश और मंदिर का निर्माण
इस कष्टदायक स्थिति में एक रात महाराजा को स्वप्न में श्री गोविंद देव जी के दर्शन हुए, जिन्होंने उन्हें आदेश दिया कि वे अपने महलों में एक नया मंदिर स्थापित करें, जहाँ उन्हें पुनः दिव्य दर्शन प्राप्त होंगे। इसी स्वप्नादेश के आधार पर श्री बृज निधि जी मंदिर की स्थापना की गई।
महाराजा और भक्ति परंपरा
महाराजा सवाई प्रताप सिंह का भक्ति-भाव इतना गहरा था कि वे प्रतिदिन श्री बृज निधि जी के राजभोग की आरती में उपस्थित रहते थे। वे हर दिन एक पद्य (भजन) की रचना कर श्रीजी को समर्पित करते और राजभोग का प्रसाद ग्रहण करने के बाद ही अपना भोजन करते थे। महाराजा द्वारा रचित “बृज निधि ग्रंथावली” उनकी भक्ति और काव्यकला का अनुपम उदाहरण है।
मंदिर की वास्तुकला और प्रशासन
श्री बृज निधि जी का मंदिर वास्तुकला की दृष्टि से अत्यंत भव्य और कलात्मक है। इसका स्वरूप किसी राजमहल के समान दिखाई देता है, जो इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाता है। मंदिर का नियंत्रण वर्तमान में देवस्थान विभाग के अंतर्गत है, और यहाँ की पूजा-अर्चना एवं सेवा राजकीय कर्मचारियों द्वारा संपन्न कराई जाती है। मंदिर में नैवेद्य और अन्य धार्मिक अनुष्ठान राजकीय कोष से संपन्न किए जाते हैं।
अंतिम विचार
जयपुर के ऐतिहासिक मंदिरों में श्री बृज निधि जी मंदिर एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसकी स्थापना से जुड़ी कथा, महाराजा सवाई प्रताप सिंह की भक्ति, और मंदिर की भव्य वास्तुकला इसे श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत आकर्षक बनाती है। यह मंदिर केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक जीवंत इतिहास भी है, जो भक्तों को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है।