
मंदिर श्री लक्ष्मी नारायण जी (बाईजी)
लक्ष्मी नारायणमंदिर के बारे में
संस्थापक
इस मंदिर की स्थापना महाराजा जयसिंह द्वितीय के राजदरबार के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित जगन्नाथ शर्मा के मार्गदर्शन में की गई थी
स्थापना
1730-1732 के मध्य
फोटोग्राफी
हाँ जी
नि:शुल्क प्रवेश
हाँ जी
लक्ष्मी जयंती और जयपुर का ऐतिहासिक लक्ष्मीनारायण मंदिर
फाल्गुन पूर्णिमा का दिन विशेष रूप से लक्ष्मी जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी प्रकट हुई थीं और इसीलिए इस तिथि को धन और समृद्धि की देवी मां लक्ष्मी का जन्मदिवस माना जाता है। इस शुभ अवसर पर विधि-विधान से मां लक्ष्मी की पूजा करने से सुख, समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है।
जयपुर, जिसे पिंकसिटी के नाम से जाना जाता है, अपने भव्य और प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। लक्ष्मी जयंती के अवसर पर हम आपको जयपुर के सबसे प्राचीन और सिद्ध लक्ष्मीनारायण मंदिर की रोचक कहानी बता रहे हैं, जिसे बाईजी का मंदिर भी कहा जाता है।
मंदिर का ऐतिहासिक महत्व
जयपुर की स्थापना के समय महाराजा जयसिंह द्वितीय ने शहर के वास्तु शास्त्र को ध्यान में रखते हुए तीन प्रमुख चौपड़ (चौराहे) बनाए और उन पर तीन प्रमुख देवियों—महालक्ष्मी, दुर्गा और सरस्वती के यंत्र स्थापित किए।
- छोटी चौपड़ – यहां मां सरस्वती का यंत्र स्थापित कर विद्वानों और पंडितों को बसाया गया।
- रामगंज चौपड़ – यहां मां दुर्गा का यंत्र स्थापित कर योद्धाओं और रक्षकों को बसाया गया।
- बड़ी चौपड़ – यहां महालक्ष्मी का यंत्र स्थापित कर एक भव्य शिखरबद्ध मंदिर का निर्माण करवाया गया।
मंदिर निर्माण में मीणा सरदार भवानी राम मीणा की पुत्री बीचू बाई ने महत्वपूर्ण योगदान दिया, इसलिए इसे बाईजी का मंदिर भी कहा जाता है।
भव्य वास्तुकला और विशेषताएँ
करीब 70 फीट ऊँचे चार विशाल शिखरों से सुसज्जित यह मंदिर दक्षिण भारतीय स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
- भगवान लक्ष्मीनारायण और मां लक्ष्मी की मूर्तियाँ एक ही शिला से तराशी गई हैं।
- भगवान विष्णु के वाम भाग में मां लक्ष्मी विराजमान हैं, जो उनकी कृपा का प्रतीक हैं।
- मंदिर की सुरक्षा के लिए गरुड़ देवता को नियुक्त किया गया है, जिनके साथ जय और विजय नामक द्वारपाल भी खड़े हैं।
- यहाँ भगवान शिव और माता पार्वती का दुर्लभ विग्रह भी स्थापित है, जिसमें भगवान शिव नंदी पर सवार हैं।
ज्योतिषीय महत्व और मंदिर का प्रभाव
इस मंदिर की स्थापना महाराजा जयसिंह द्वितीय के राजदरबार के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित जगन्नाथ शर्मा के मार्गदर्शन में की गई थी।
- मंदिर निर्माण के साथ ही सोना, चांदी और बहुमूल्य रत्नों का व्यापार करने वाले जौहरी यहाँ बसाए गए और इस क्षेत्र को जौहरी बाजार के रूप में विकसित किया गया।
- बाद में इस चौपड़ का नाम ‘माणक चौक’ रखा गया, क्योंकि यहाँ माणक (रूबी) सहित बहुमूल्य रत्नों का व्यापार होने लगा।
मंदिर का निर्माण और परंपरा
संवत 1730-1732 के मध्य इस मंदिर का निर्माण बाईजी लाल विचित्र कुमारी जी (महाराजा सवाई सिंह द्वितीय की पुत्री) द्वारा करवाया गया। यह मंदिर निम्बार्क संप्रदाय से संबंधित है और यहाँ श्री लक्ष्मीनारायण जी की प्रतिमा स्थापित है।
धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर
बाईजी का लक्ष्मीनारायण मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि जयपुर की समृद्ध वास्तुकला और सांस्कृतिक धरोहर का अनमोल रत्न भी है। यह मंदिर आस्था, कला और इतिहास का संगम है और यदि आप जयपुर आते हैं, तो इस पवित्र स्थान के दर्शन अवश्य करें और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करें।