देवी सरस्वती

बारे में

अस्त्र
वीणा, वेद, जापमाला, ब्रह्मास्त्र

त्यौहार
बसंत पंचमी

सवारी
राजहंस, कमल

जीवनसाथी
ब्रह्मा

भाई-बहन
शिव (बड़े भाई)

सरस्वती हिंदू धर्म की प्रमुख वैदिक और पौराणिक देवियों में से एक हैं। सनातन धर्म शास्त्रों में दो सरस्वती का उल्लेख मिलता है, एक ब्रह्मा की पत्नी सरस्वती और एक ब्रह्मा की पुत्री तथा विष्णु की पत्नी सरस्वती। ब्रह्मा की पत्नी सरस्वती मूल प्रकृति से उत्पन्न सत्व महाशक्ति और प्रमुख त्रिदेवियों में से एक हैं तथा विष्णु की पत्नी सरस्वती ब्रह्मा की पुत्री मानी जाती हैं, क्योंकि वे ब्रह्मा की जिह्वा से प्रकट हुई थीं। कई शास्त्रों में इन्हें मुरारी वल्लभा (विष्णु की पत्नी) कहकर भी संबोधित किया गया है। धर्म शास्त्रों के अनुसार दोनों देवियाँ एक ही नाम, रूप, स्वभाव, शक्ति और ब्रह्मज्ञान-विद्या आदि की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं, इसलिए इनकी साधना और उपासना में अधिक अंतर नहीं है।

दक्षिणामूर्ति/नटराज शिव और सरस्वती दोनों को ही ब्रह्म विद्या और नृत्य एवं संगीत के क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। यही कारण है कि दुर्गा सप्तशती के मूर्ति रहस्य में दोनों को एक ही प्रकृति की देवी कहा गया है। अतः सरस्वती के 108 नामों में से इन्हें शिवानुजा (शिव की छोटी बहन) भी कहा जाता है।

कहीं-कहीं ब्रह्मा की पुत्री सरस्वती को विष्णु की पत्नी सरस्वती से सर्वथा भिन्न माना गया है। इस प्रकार विभिन्न मतों में तीन सरस्वती का भी उल्लेख मिलता है। इसके अन्य पर्यायवाची या नाम हैं- वाणी, शारदा, वागेश्वरी, वेदमाता आदि।

इन्हें शुक्लवर्णा, शुक्लम्बरा, वीणा-पुस्तक-धारिणी तथा श्वेतपद्मासना कहा जाता है। इनकी पूजा से मूर्ख भी विद्वान बन सकता है। माघ शुक्ल पंचमी (श्री पंचमी/बसंत पंचमी) को इनकी विशेष पूजा करने की परंपरा है। देवी भागवत के अनुसार विष्णु की पत्नी सरस्वती वैकुंठ में निवास करती हैं तथा पितामह ब्रह्मा की जिह्वा से उत्पन्न हुई थीं तथा कहीं-कहीं यह भी वर्णन मिलता है कि वे नित्यगोलोक निवासी भगवान कृष्ण की बांसुरी के कंठ से प्रकट हुई थीं। वेदों के मेधा सूक्त, उपनिषद, रामायण, महाभारत, कालिका पुराण, वृहत् नंदिकेश्वर पुराण और शिव महापुराण, श्रीमद् देवी भागवत पुराण आदि में देवी सरस्वती का वर्णन मिलता है। इसके अलावा ब्रह्मवैवर्त पुराण में विष्णु की पत्नी सरस्वती का विशेष उल्लेख मिलता है।

पौराणिक कथा के अनुसार सृष्टि के आरंभ में पितामह ब्रह्मा ने अपनी इच्छा से ब्रह्माण्ड की रचना की और उसमें पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, मनुष्य आदि सभी प्रकार के चर-अचर प्राणियों की रचना की। लेकिन वे अपनी रचना से संतुष्ट नहीं थे, उन्हें लग रहा था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर सन्नाटा छा गया।

तब ब्रह्मा जी ने इस समस्या के समाधान के लिए अपने कमण्डल से जल हथेली में लिया और संकल्प स्वरूप उस जल को छिड़का और भगवान श्री विष्णु की स्तुति करने लगे। ब्रह्मा जी की प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु तुरंत उनके समक्ष प्रकट हुए और उनकी समस्या जानकर भगवान विष्णु ने माता मूलप्रकृति आदिशक्ति का आह्वान किया। विष्णु जी के आह्वान से मूलप्रकृति आदिशक्ति तत्काल ही एक प्रकाश पुंज के रूप में वहां प्रकट हो गईं, तब ब्रह्मा और विष्णु जी ने उनसे इस संकट को दूर करने का अनुरोध किया।

ब्रह्मा जी और विष्णु जी की बात सुनकर उसी क्षण मूलप्रकृति आदिशक्ति के संकल्प और अपने अंश से एक प्रचंड श्वेत रंग का प्रकाश उत्पन्न हुआ जो एक दिव्य स्त्री के रूप में परिवर्तित हो गया। जिसके हाथों में वीणा, वर-मुद्रा पुस्तक और माला थी तथा वह श्वेत कमल पर विराजमान थी। मूलप्रकृति आदिशक्ति के शरीर से उत्पन्न प्रकाश से प्रकट होते ही उस देवी ने वीणा का मधुर नाद किया जिससे संसार के सभी राग-रागिनियों को वाणी मिल गई। जलधारा में हलचल मच गई। हवा चलने लगी और सरसराहट होने लगी।

तब सभी देवताओं ने ध्वनि और सार प्रदान करने वाली उस देवी को ब्रह्मा के ज्ञान, शिक्षा, वाणी और संगीत कला की अधिष्ठात्री देवी “सरस्वती” कहा। तब आदि शक्ति मूल प्रकृति ने पितामह ब्रह्मा से कहा कि मेरे तेज से उत्पन्न यह देवी सरस्वती आपकी अर्धांगिनी अर्थात् आपकी पत्नी बनेगी। जैसे लक्ष्मी श्री विष्णु की शक्ति हैं, शिव शिव की शक्ति हैं, उसी प्रकार यह देवी सरस्वती आपकी शक्ति होंगी। ऐसी घोषणा करके मूल प्रकृति, प्रकाश स्वरूपा आदि शक्ति अंतर्ध्यान हो गईं। इसके बाद सभी देवता सृष्टि के संचालन में लग गए। पुराणों में सरस्वती को वागीश्वरी, भगवती, शारदा तथा वीणा वादिनी सहित अनेक नामों से संबोधित किया गया है। ये ब्रह्मा के सभी प्रकार के ज्ञान, बुद्धि तथा वाणी की प्रदाता हैं। इन्होंने ही संगीत की रचना की थी, इसलिए ये संगीत की अधिष्ठात्री देवी भी हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-

प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।

अर्थात्- ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, विवेक तथा मनोवृत्तियों की रक्षक हैं। हमारे आचरण तथा बुद्धि का आधार भगवती सरस्वती ही हैं। उनकी समृद्धि और रूप की महिमा अद्भुत है। कई पुराणों के अनुसार नित्यगोलोक के निवासी भगवान कृष्ण ने सरस्वती से प्रसन्न होकर कहा था कि जो लोग बसंत पंचमी के दिन उनकी विशेष पूजा करेंगे, उन्हें सिद्धि प्राप्त होगी।

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