माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसन्त पंचमी Basant Panchami के रूप में मनाते हैं। यह दिन ऋतुराज बसन्त के आगमन की सूचना देता है। इस दिन भगवान विष्णु तथा सरस्वती का पूजन किया जाता है।

बसन्त पंचमी के दिन घरों में केसरिया चावल बनाये जाते हैं तथा पीले कपड़े पहनते हैं। बच्चे पतंग उड़ाते हैं।

कथा : भगवान विष्णु की आज्ञा से प्रजापति ब्रह्माजी सृष्टि की रचना करके पृथ्वी पर आये तो उन्हें चारों ओर सुनसान तथा निर्जन दिखाई दिया। उदासी से सारा वातावरण मूक सा हो गया था। जैसे किसी के वाणी न हो।

इस उदासी तथा मलीनता को दूर करने के लिए ब्रह्माजी ने अपने कमण्डल से जल छिड़का। उन जल कणों के वृक्षों पर पड़ते ही चार भुजाओं वाली एक शक्ति उत्पन्न हुई जो दो हाथों से वीणा बजा रही थी तथा दो हाथों में पुस्तक तथा माला धारण किये थी। ब्रह्माजी ने उस देवी से वीणा बजाकर उदासी दूर करने को कहा।

उस देवी ने वीणा बजाकर सब जीवों को वाणी प्रदान की। इस देवी का नाम सरस्वती पड़ा। यह देवी विद्या और बुद्धि को देने वाली है। इसलिए हर घर में इस दिन सरस्वती का पूजन होता है ।

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