करवा चौथ Date: शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025

करवा चौथ कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन यदि सुहागिन स्त्रियां उपवास रखें तो उनके पति की उम्र लंबी होती है और उनका गृहस्थ जीवन सुखद होने लगता है। उत्तर भारत खासकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश आदि मे इस पर्व को मान्य जाता है। इस दिन जो सुहागिन स्त्री प्रातःकाल से ही निर्जला व्रत रहकर संध्याकाल मे इस कथा को सुनती है और रात्रि में चंद्रमा को अध्ध्य देकर भोजन करती है, उसको शास्त्रानुसार पुत्र, धन-धान्य, सौभाग्य एवं अतुल यश की प्राप्ति होती है। चूंकि यह स्त्रियों का अपने सुहाग की रक्षा के लिए एक मुख्य त्योहार है, इसलिए यह अन्य व्रतों में सर्वाधिक प्रिय व्रत माना जाता है।

करवा चौथ व्रत की विधि

प्रात: काल में नित्यकर्म से निवृ्त होकर संकल्प लें और व्रत आरंभ करें।

व्रत के दिन निर्जला रहे यानि जलपान ना करें।

व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें-

प्रातः पूजा के समय इस मन्त्र के जप से व्रत प्रारंभ किया जाता है- ‘मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।’

घर के मंदिर की दीवार पर गेरू से फलक बनाकर चावलों को पीसे। फिर इस घोल से करवा चित्रित करें। इस रीती को करवा धरना कहा जाता है।

शाम के समय, माँ पार्वती की प्रतिमा की गोद में श्रीगणेश को विराजमान कर उन्हें लकड़ी के आसार पर बिठाए।

माँ पार्वती का सुहाग सामग्री आदि से श्रृंगार करें।

भगवान शिव और माँ पार्वती की आराधना करें और कोरे करवे में पानी भरकर पूजा करें।

सौभाग्यवती स्त्रियां पूरे दिन का व्रत कर व्रत की कथा का श्रवण करें।

सायं काल में चंद्रमा के दर्शन करने के बाद ही पति द्वारा अन्न एवं जल ग्रहण करें।

पति, सास-ससुर सब का आशीर्वाद लेकर व्रत को समाप्त करें।

करवा चौथ पौराणिक व्रत कथा

एक गाँव में एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी। सेठानी ने सातों बहुएँ और बेटी सहित कार्तिक कृष्ण चौथ को करवा चौथ का व्रत किया। उस लड़की के भाई हमेशा अपनी बहन के साथ भोजन करते थे। उस दिन भी भाईयों ने बहन को भोजन के लिए बोला। तब बहन बोली भैया आज मेरा करवा चौथ का व्रत है इसलिए चांद उगेगा जब खाना खाऊँगी। भाइयों ने सोचा कि बहन भूखी रहेगी इसलिए एक भाई ने दिया लिया और एक भाई ने चलनी लेकर पहाड़ी पर चढ़ गये। दिया जलाकर चलनी से ढक कर कहा कि बहन चांद उग गया है। अरख दे और खाना खा ले तब बहन ने भाभियों से आकर कहा कि भाभी चाँद देख लो। भाभी बोली कि बाईजी ये तो चांद तुम्हारे लिये उगा है तुम्ही देख लो हमारा चाँद तो रात में दिखेगा। बहन अकेली ही खाना खाने बैठी। पहले कौर में ही बाल आया, दूसरा कौर खाने लगी तो उसे सुसराल से बुलावा आ गया कि बेटा बहुत बीमार है तो बहू को जल्दी भेजो।

माँ ने जैसे ही कपड़े निकालने के लिए बक्सा खोला तीन बार ही कभी सफेद, कभी काला, कभी नीले कपड़े ही हाथ में आये। माँ ने एक सोने का सिक्का पल्ले से बांध दिया और कहा कि रास्ते में सबके पैर छूती जाना जो भी तुझे मर सुहाग की आशीष देवें उसको ही यह सोने का सिक्का देना और पल्ले से गांठ बांध लेना। रास्ते में सब औरतें, शीष देती गई पर किसी ने भी सुहाग की आशीष नहीं दी। सुसराल के दरवाजे पर पहुँचने पर पलने में सोती हुई जेठुती (जेठ की लड़की) झूल रही थी। उसके पैर छूने लगी तो वह बोली कि “सीली हो सपूती हो सात पूत की माँ हो।” यह वाक्य सुनते हुए उसने जल्दी से सोने का सिक्का निकालकर उसे दे दिया और पल्ले से गांठ बांध ली।

अन्दर गई तो पति मरा पड़ा था। बहु ने अपने मरे हुए पति को जलाने के लिए नहीं ले जाने दिया और बोली मेरे लिये एक अलग से झोपड़ी बनवा दो और वहीं अपेन मरे हुये पति को लेकर रहने लगी। रोज बची-खुची, ठण्डी-बासी रोटी दासी के साथ भेज देती और कहती जा मुर्दा सेवनी को रोटी दे आ। थोड़े दिन बाद माघ की तिल चौथ आयी और बोली, “करवा पिला तू करवा पिला भाईयों की प्यारी करवा ले। दिन में चांद देखने वाली करवा पिला ” जब वो बोली कि “हे ! चौथ माता मेरा उजड़ा हुआ सुहाग तो आपको ही बनाना पड़ेगा। मेरे पति को जिन्दा करना पड़ेगा। मुझे मेरी गलती का पश्चाताप है, मैं आपसे माफी मांगती हूँ। तब चौथ माता बोली मेरे से बड़ी बैसाख की बैसाखी चौथ आयेगी वो तुझे सुहाग देगी।” इस तरह बैसाखी चौथ आयी और उसने कहा की भादवे की चौथ तुझे सुहाग देगी। तब कुछ महिने बाद भादुड़ी चौथ माता स्वर्ग से उतरी और वही सब बात कहने लगी, तब उसने चौथ माता के पाँव पकड़ लिये। चौथ माता बोली कि तेरे ऊपर सबसे बडी कार्तिक की करवा चौथ माता है। वह ही नाराज हुई है, यदि तूने उसके पैर छोड़ दिये तो फिर कोई भी तेरे पति को जिन्दा नहीं कर सकता है। कार्तिक का महिना आया, स्वर्ग से चौथ माता उतरी, चौथ माता आयी और गुस्से से बोली, “भाइयों की बहन करवा ले, दिन में चाँद उगानी करवा ले, व्रत भांडनी करवा ले।” साहूकार की बेटी ने चौथ माता के पैर पकड़ लिये व विलाप करने लगी-हे ! चौथ माता, मैं नासमझ थी, मुझे इतना बड़ा दण्ड मत देवों। तब चौथ माता बोली-मेरे पैर क्यों पकड़कर बैठी है। तब वह बोली मेरी बिगड़मी आपको बनानी ही पड़ेगी, मुझे सुहाग देना ही पड़ेगा। क्योंकि आप सब जग की माता हैं और सबकी इच्छा पूरी करने वाली है। तब चौथ माता खुश हुई और उसे अमर सुहाग का आशीर्वाद दिया। इतने में उसका पति बैठा हो गया और बोलने लगा मुझे बहुत नींद आयी। वह बोली मुझे तो बारह महिने हो गये, मुझे तो चौथ माता ने सुहाग दिया है। तब पति बोला कि चौथ माता का विधि विधान से उजमन करो। उधर ननद रोटी देने आयी तो उसने दो जने के बोलने की आवाज सुनी तो अपनी माँ को जाकर बोली कि भाभी तो पता नहीं किससे बातें कर रही है। तब सासू ने जाकर देखा कि बहू व बेटा दोनों जीम रहे हैं व चौपड़ पासा खेल रहे हैं। देखकर वह बहुत खुश हुई और पूछने लगी ये कैसे हुआ, बहू बोली यह सब मुझे मेरी चौथ माता ने दिया और सासूजी के पैर छूने लगी और सास ने अमर सुहाग
की आशीष दी। दूर खड़े हुये पति-पत्नी का गठबन्धन जुड़ गया और सब चौथ माता का चमत्कार मानने लगे। चौथ माता का व्रत पुरुष की पत्नी, बेटे की माँ सभी को करना चाहिये। तेरह चौथ करनी चाहिये।

हे! चौथ माता जैसा साहूकार की बेटी का सुहाग अमर किया वैसा सभी को कहना। कहने-सुनने वालों को, हुकांरा भरने वालों को सभी को अमर सुहाग देना। बोलो-मंगल करणी दु:ख हरणी चौथ माता की जाय।

Comments

आगामी उपवास और त्यौहार

हरतालिका तीज

मंगलवार, 26 अगस्त 2025

हरतालिका तीज
गणेश चतुर्थी

बुधवार, 27 अगस्त 2025

गणेश चतुर्थी
परिवर्तिनी एकादशी

बुधवार, 03 सितम्बर 2025

परिवर्तिनी एकादशी
ओणम / थिरुवोणम

शुक्रवार, 05 सितम्बर 2025

ओणम / थिरुवोणम
अनंत चतुर्दशी

शनिवार, 06 सितम्बर 2025

अनंत चतुर्दशी
भाद्रपद पूर्णिमा

रविवार, 07 सितम्बर 2025

भाद्रपद पूर्णिमा