आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पापांकुशा एकादशी कहते हैं। यह एकादशी पापरूपी हाथी को महावत रूपी अंकुश से बेधने के कारण पापाकुंशा एकादशी कहलाती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए एवं ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। इस एकादशी का व्रत रखने से समस्त पापों का नाश हो जाता है।
कथा : विन्ध्याचल पर्वत पर एक महाक्रूर बहेलिया रहता था जिसका कर्म के अनुसार नाम भी क्रोधन था। उसने अपना समस्त जीवन हिंसा, लूटपाट, मिथ्या भाषण तथा शराब पीना व वेश्यागमन में ही बिता दिया। यमराज ने उसके अन्तिम समय से एक दिन पूर्व अपने दूतों को उसे लाने हेतु भेजा। दूतों ने क्रोधन को बताया कि कल तुम्हारा अन्तिम समय है, हम तुम्हें लेने आये हैं। मृत्यु के डर से क्रोधन अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुँचा। उसने ऋषि से अपनी रक्षा हेतु बहुत अनुनय विनय पूर्वक प्रार्थना की। ऋषि को उस पर दया आ गयी। उन्होंने उससे आश्विन शुक्ल की एकादशी का व्रत तथा भगवान विष्णु के पूजन का विधान बताया। संयोग से उस दिन एकादशी ही थी। क्रोधन ने ऋषि द्वारा बताये अनुसार एकादशी का विधिवत व्रत एवं पूजन किया। भगवान की कृपा से वह विष्णु लोक को गया। उधर यमदूत हाथ मलते रह गये।