आश्विन मास की अमावस्या ही पितृ विसर्जन अमावस्या

के नाम से विख्यात है। इस दिन ब्राह्मण को भोजन तथा दान देने से पितर तृप्त हो जाते हैं तथा वे अपने पुत्रों को आशीर्वाद देकर जाते हैं। जिन परिवारों को अपने पितरों की तिथि याद नहीं रहती है उनका श्राद्ध भी इसी अमावस्या को कर देने से पितर सन्तुष्ट हो जाते हैं।

इस दिन शाम को दीपक जलाकर पूड़ी पकवान आदि खाद्य पदार्थ दरवाजे पर रखे जाते हैं। जिसका अर्थ है कि पितृ जाते समय भूखे न रह जायें। इसी तरह दीपक जलाने का आशय उनके मार्ग को आलोकित करना है।

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