ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं । इस व्रत में पानी का पीना वर्जित है, इसलिए इसे निर्जला एकादशी कहते हैं। इस एकादशी को भीमसेन एकादशी भी कहा जाता है
वर्ष भर की चौबीस एकादशियों में से ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी सर्वोत्तम मानी गई है। इसका व्रत रखने से सारी एकादशियों के व्रतों का फल मिल जाता है।
यह व्रत नर एवं नारियों दोनों को करना चाहिए। जलपान के निषिद्ध होने पर भी फलाहार के साथ दूध लिया जा सकता है। इस दिन निर्जला व्रत करते हुए शेषशायी रूप में भगवान विष्णु की आराधना का विशेष महत्त्व है। इस दिन ॐ नमो भगवते वासुदेवायः का जाप करके गोदान, वस्त्र दान, छत्र, फल आदि का दान करना चाहिए।
कथा : एक दिनमहर्षि वेदव्यास पांडवों के यहाँ पधारे। भीम ने महर्षि वेदव्यास से पूछा, भगवान! युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुन्ती और द्रुपद की पुत्री द्रौपदी सभी सभी एकादशियों को भोजन न कर, उपवास रखते हैं। और मुझसे भी उपवास रखने को कहते हैं। परन्तु मैं बिना खाए भूखा नहीं रह सकता। इसलिए चौबीस एकादशियों पर निराहार रहने का कष्ट साधना से बचाकर मुझे कोई ऐसा व्रत बताइये जिसे करने से मुझे विशेष असुविधा न हो और उन सबका फल भी मुझे मिल जाये।
महर्षि व्यास जानते थे कि भीम के उदर में बृक नामक अग्नि है इसलिए अधिक मात्रा में भोजन करने पर भी उसकी भूख शान्त नहीं होती है।
महर्षि वेदव्यास बोले हे भीम तुम ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी का व्रत रखा करो। इस व्रत में स्नान आचमन में पानी पीने से दोष नहीं होता। इस व्रत से अन्य तेईस एकादशियों के पुण्य का लाभ भी मिलेगा। तुम जीवन पर्यन्त- इस व्रत का पालन करो। भीम ने बड़े साहस के साथ निर्जला एकादशी का व्रत किया, जिसके परिणाम स्वरूप प्रातः होते-होते वह संज्ञाहीन हो गया। तब पांडवों ने गंगाजल, तुलसी चरणामृत प्रसाद, देकर उनकी मूर्छा दूर की। इसलिए इसे भीमसेन एकादशी भी कहते है।