
देवी राधा
बारे में
प्रतीक
स्वर्ण कमल
त्यौहार
राधा अष्टमी
सवारी
कमल और सिंहासन
जीवनसाथी
श्री कृष्ण
माता-पिता
वृषभानु (पिता), कीर्ति देवी (माँ)
राधा अथवा राधिका हिन्दू धर्म की प्रमुख देवी हैं।[ वह कृष्ण की प्रेमिका और संगिनी के रूप में चित्रित की जाती हैं। इस प्रकार उन्हें राधा कृष्ण के रूप में पूजा जाता हैं। पद्म पुराण के अनुसार, वह बरसाना के प्रतिष्ठित यादव राजा वृषभानु गोप की पुत्री थी एवं लक्ष्मी अवतार थीं।
भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को राधा अष्टमी अर्थात राधा रानी के प्रकट होने के दिन के रूप में मनाया जाता है। द्वापर युग में इसी पावन तिथि पर देवी राधा का जन्म हुआ था।
राधा अष्टमी व्रत का महत्व
एक बार श्री कृष्ण भक्ति के अवतार देवर्षि नारद ने भगवान सदाशिव के चरणों में प्रणाम करके पूछा कि श्री राधा देवी लक्ष्मी, देवपत्नी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अन्तर्ज्ञान विद्या, वैष्णवी प्रकृति, वेदकन्या, मुनिकन्या आदि कौन हैं?
इस प्रश्न के उत्तर में भगवान ने कहा कि एक तो क्या, करोड़ों महालक्ष्मियां भी उनके चरण कमलों की सुन्दरता के सामने नहीं टिक सकतीं, इसीलिए तीनों लोकों में कोई भी श्री राधाजी के रूप, गुण और सुन्दरता का एक मुख से वर्णन करने की क्षमता नहीं रखता। उनकी सुन्दरता जगत को मोहित करने वाले श्री कृष्ण को भी मोहित करने के लिए पर्याप्त है, इसीलिए मैं अनंत मुखों से भी उनका वर्णन नहीं कर सकता।
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को श्री राधाजी के चरणों के दर्शन होते हैं। उनके चरणों की शोभा का वर्णन करना किसी के लिए भी संभव नहीं है।
जिनके इष्टदेव श्री राधा-कृष्ण हैं, उन्हें राधाष्टमी व्रत अवश्य करना चाहिए क्योंकि यह व्रत सर्वश्रेष्ठ है। श्री राधाजी अत्यंत पवित्र और ऐश्वर्यशाली हैं। लक्ष्मीजी अपने भक्तों के घर में सदैव निवास करती हैं। इस व्रत को करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और मनुष्य को सभी सुख प्राप्त होते हैं। इस दिन राधाजी से मांगी गई हर मनोकामना पूर्ण होती है।