गुरु पूर्णिमा Date: गुरूवार, 10 जुलाई 2025

आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) या व्यास पूर्णिमा कहते हैं। संस्कृत में ‘गुरु’ शब्द का अर्थ है ‘अंधकार को मिटाने वाला।’ गुरु साधक के अज्ञान को मिटाता है, ताकि वह अपने भीतर ही सृष्टि के स्रोत का अनुभव कर सके। प्राचीन काल में विद्यार्थी गुरुकुलों में शिक्षा प्राप्त करने जाते थे। छात्र इस दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित अपने गुरु का पूजन करके अपनी शक्ति के अनुसार दक्षिणा देकर गुरुजी को प्रसन्न करते थे।

इस दिन पूजा से निवृत्त होकर अपने वस्त्र, गुरु के पास जाकर फल, फूल व माला अर्पण करके उन्हें प्रसन्न करना चाहिए। गुरु का आशीर्वाद ही कल्याणकारी और ज्ञानवर्धक होता है। चारों वेदों के व्याख्याता व्यास ऋषि थे। हमें वेदों का ज्ञान देने वाले व्यास जी ही हैं। इसलिए वे हमारे आदि गुरु हुए। उनकी स्मृति को ताजा रखने के लिए हमें अपने-अपने गुरुओं को व्यास जी का ही अंश मानकर उनकी पूजा करनी चाहिए ।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक निषाद नदी मे मछली को अपने जाल में फँसा लिया। निषाद ने जब मछली का पेट चीरा तो उसके पेट से एक सुंदर कन्या निकली। उस कन्या का नाम उसने सत्यवती रखा। मत्स्यगंधा
नाम से भी जाना जाता था, क्योंकि उसके अंगों से मछली की गंध निकलती थी। बड़ी होने पर वह बालिका नाव खेने का कार्य करने लगी। एक बार पाराशर मुनि को उसकी नाव पर बैठ कर नदी पार करनी पड़ी।

तो एकांत पाकर उसकी सुंदरता पर ऋषि पराशर का तप डगमगा गया और कामवासना के वशीभूत होकर उन्होंने अपनी इच्छा सत्यवती पर प्रकट कर दी।

सत्यवती ने कहा मुनिवर! आप ब्रह्मज्ञानी हैं और मैं निषाद कन्या। हमारा सहवास सम्भव नहीं है। महाराज में नीच जाति में उत्पन्न हुई हूँ और मेरा शरीर भी दुर्गंधमय है। ऐसे में आपके योग्य कैसे हो सकती हूँ?

तब पाराशर मुनि बोले- “तुम चिन्ता मत करो। प्रसूति होने पर भी तुम कुमारी ही रहोगी। इतना कह कर उन्होंने अपने योगबल से चारों ओर घने कुहरे का जाल रच दिया और सत्यवती के साथ भोग किया। तत्पश्चात् उसे आशीर्वाद देते हुए कहा तुम्हारे शरीर से जो मछली की गंध निकलती है, वह सुगन्ध में परिवर्तित हो जायेगी।

समय आने पर सत्यवती की कोख से महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ। वेदों के विस्तार के कारण ये वेदव्यास के नाम से जाने जाते हैं। वेद व्यास ने चारो वेदों के विस्तार के साथ-साथ 18 महापुराणों तथा ब्रह्मसूत्र का भी प्रणयन किया। महर्षि वेदव्यास महाभारत के रचयिता हैं, बल्कि वह उन घटनाओ के भी साक्षी रहे हैं जो घटित हुई हैं।

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