माघ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं ।
विधान : भगवान श्रीकृष्ण की पुष्प, जल, अक्षत, रोली तथा विशिष्ट पदार्थों से पूजा करनी चाहिए। भगवान को भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।
कथा : प्राचीन काल में इन्द्र की सभा में माल्यवान नाम का एक गन्धर्व गीत गा रहा था, परन्तु उसका मन अपनी नवयौवना पत्नी में पड़ा था। इस कारण गाते समय उसकी लय-ताल बिगड़ गई। इन्द्र ने कुपित होकर उसे श्राप दे दिया कि तू जिसकी याद में मस्त है वह राक्षसी हो जाए।
वह अपनी गलती को स्वीकार करते हुए इन्द्र से क्षमा माँगते हुए प्रार्थना करने लगा कि अपना श्राप वापिस ले लें। परन्तु इन्द्र ने उसे सभा से बाहर निकलवा दिया। घर आने पर उसने देखा वास्तव में उसकी पत्नी राक्षसी बन चुकी थी।
श्राप के निवारण के लिए उसने अनेक यत्न किये परन्तु सब निष्फल रहे। अचानक एक दिन उसकी भेंट ऋषि नारद से हो गई। नारदजी ने उसे श्राप की निवृत्ति के लिये माघ शुक्ल एकादशी का व्रत तथा भगवत कीर्तन करने की सलाह दी। माल्यवान गंधर्व ने एकादशी का व्रत किया, जिसके प्रभाव से उसकी पत्नी पिशाच देह से छूट गई और अति सुन्दर देह धारण कर दोनों स्वर्गलोक को चले गये।