Kaal Bhairav Jayanti कालभैरव जयन्ती हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव की उपासना के लिए मनाया जाता है। यह पर्व मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह विशेष दिन भगवान शिव के उस रूप को समर्पित है जिसे उन्होंने ब्रह्मा जी के अहंकार को नष्ट करने के लिए धारण किया था।
कालभैरव के महत्व
- रौद्र रूप: भगवान शिव का यह रौद्र रूप, काल भैरव, भक्तों की सुरक्षा और उनके कष्टों का नाश करता है।
- अष्टमी तिथि: हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी काल भैरव को समर्पित होती है, लेकिन मार्गशीर्ष माह की अष्टमी को विशेष रूप से जयंती के रूप में मनाया जाता है।
- शत्रु नाशक: काल भैरव को भयंकर से भयंकर शत्रुओं का नाश करने वाला माना जाता है, जो अपने भक्तों की हर पल रक्षा करते हैं।
पौराणिक कथा
एक प्रचलित कथा के अनुसार, एक बार सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी ने भगवान शिव की वेशभूषा और उनके गणों के रूप को देखकर उनका तिरस्कार किया। इस अपमान को सहन न करते हुए भगवान शिव के शरीर से क्रोध से काँपता हुआ एक भयंकर रूप प्रकट हुआ, जिसे बाद में काल भैरव के नाम से जाना गया। यह रूप ब्रह्मा जी को दंडित करने के लिए आगे बढ़ा, जिसे देखकर ब्रह्मा जी भयभीत हो गए और शिव जी से क्षमा याचना की। शिव जी की मध्यस्थता के बाद यह रूप शांत हुआ और काल भैरव को काशी का महापौर नियुक्त किया गया।
भैरव और भैरवी
भैरव जी की पत्नी, देवी भैरवी, माता पार्वती का ही अवतार मानी जाती हैं। जब भगवान शिव ने अपने अंश से भैरव को प्रकट किया, तो उन्होंने माता पार्वती से भी एक शक्ति उत्पन्न करने को कहा जो भैरव की पत्नी बन सके। तब माता पार्वती ने अपने अंश से देवी भैरवी को प्रकट किया।
पूजा और उपासना
काल भैरव की पूजा विशेषकर रात में की जाती है। यह पूजा मृत्यु के भय से मुक्ति पाने के लिए भी की जाती है। भैरव अष्टमी को भक्तजन व्रत रखते हैं और काल भैरव की उपासना करते हैं ताकि उनके जीवन से कष्टों का नाश हो और वे सुरक्षित रहें।
इस प्रकार, कालभैरव जयन्ती का हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान है और यह भक्तों के जीवन में सुख-शांति और सुरक्षा का प्रतीक है।