षटतिला एकादशी यह माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी के रूप में मनाई जाती है। इसमें छः प्रकार के तिल प्रयोग होने के कारण इसे षट्तिला एकादशी कहते हैं। पंचामृत में तिल मिलाकर पहले भगवान विष्णु को स्नान कराया जाता है। इस दिन तिल मिश्रित भोजन करते हैं। दिन में हरि कीर्तन कर रात्रि में भगवान की प्रतिमा के सामने सोना चाहिए।
कथा : प्राचीन काल में वारणसी में एक गरीब अहीर रहता था। वह जंगल से लकड़ी काट कर बेचने का काम करता था। जिस दिन उसकी लकड़ी न बिकती तो परिवार को भूखा रहना पड़ता था।
एक दिन वह साहूकार के घर लकड़ी बेचने गया। साहूकार के यहाँ उसने देखा कि किसी उत्सव की तैयारी चल रही है। अहीर ने सेठजी से डरते-डरते पूछा- सेठजी, किसी चीज की तैयारी हो रही है। सेठजी ने बताया कि षट्तिला व्रत की तैयारी की जा रही है। इस व्रत के करने से गरीबी, रोग, पाप आदि से छुटकारा तथा धन एवं पुत्र की प्राप्ति होती है।
घर पहुँचकर अहीन ने भी अपनी स्त्री सहित षट्तिला व्रत को विधिवत किया। फलस्वरूप वह कंगाल से धनवान बन गया।