मंदिर श्री बृज निधि जी
श्री कृष्ण एवं राधामंदिर के बारे में
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हाँ जी
मंदिर श्री बृज निधि जी का निर्माण जयपुर महाराजा सवाई प्रतापसिंह ने संवत 1849 में करवाया था। मंदिर में मूर्ति की स्थापना वैशाख शुक्ला अष्टमी शुक्रवार संवत 1849 में करवाई गई थी। वर्णित के संबंध में मंदिर के बाहरी भाग में दीवार पर शिलालेख लगा है।
मंदिर श्री कृष्ण भगवान की काले पाषाण की एवं राधिकाजी की धातु की भव्य एवं अलौकिक मूर्ति विराजमान है। मंदिर में सेवा पूजा वल्लभ कुल एवं वैष्णव सम्प्रदाय अनुसार मिली-जूली पद्धति से होती है। मंदिर के स्थापना के संबंध मे एक विषय घटना जुड़ी हुई है कि महाराजा सवाई प्रतापसिंहजी गोविन्द देव के अन्नय भक्त थे। गोविन्ददेवजी उन्हें साक्षात दर्शन देते एवं बात करते थे। अवध नवाब वाजिद अली शाह जिसने अवध के वाईसराय का वध कर दिया था। ब्रिटीश सरकार का घोषित शत्रु को जब हिन्दुस्तान में अन्यत्र शरण नहीं मिली तब वह जयुपर आया। महाराजा ने उसे अपने यहाँ शरण दी तथा गोविन्ददेवजी के साक्षी में महाराजा ने यह शपथ ली कि अवध नवाब वाजिद अली शाह को अंग्रेजों को नहीं देंगे, परन्तु अंग्रेजों एवं जयपुर रियासत के प्रधानमंत्री दौलतराम के दबाव के अंतर्गत अवध नवाब को लिखित समझौते एवं शर्तों के आधार पर अंग्रेजों को सौंप दिया गया चूंकि महाराज प्रतापसिंह ने श्री गोविन्ददेवजी की शपथ को झुठलादी इस कारण कहावत अनुसार गोविन्ददेवजी ने महाराजा को साक्षात दर्शन देना बन्द कर दिया। महाराजा इससे बड़े व्यथित हुऐ एवं अन्न्, जल त्याग दिया। इस पर श्री गोविन्ददेवजी ने महाराज को स्वप्न में दर्शन दिया कि श्री बृजनिधी का महलों में नया मंदिर स्थापित किया जावें। यह मूर्ति तुम्हें स्वप्न में दर्शन देती रहेगी इसी अनुसार यह मंदिर स्थापित किया गया।
महाराजा सवाई प्रतापसिंह प्रतिदिन भगवान बृजनिधि के राजभोग की आरती के समय दर्शन करते थे एवं एक “पद्य की प्रतिदिन रचना कर श्रीजी को सुनाते थे तथा राजभोग का प्रसाद ग्रहण करने के पश्चात ही भोजन करते थे। महाराज प्रतापसिंह के रचित बृजनिधि ग्रंथावली एक प्रसिद्ध ग्रंथ है। मंदिर का भव्य भवन वास्तुकला की दृष्टि से अत्यन्त कलात्मक एवं दर्शनीय है। मंदिर का प्रबंध व नियंत्रण देवस्थान के अन्तगर्त है। राजकीय कर्मचारी मंदिर की सेवा-पूजा करते है। राजकोष से मंदिर में नैवेध्य आरोगण लगाया जाता है।