
मंदिर के बारे में
संस्थापक
जय सिंह द्वितीय
स्थापना
18वीं शताब्दी
फोटोग्राफी
हाँ जी
नि:शुल्क प्रवेश
हाँ जी
जयपुर का रहस्यमयी कल्कि मंदिर – 300 साल पुराना अनोखा धाम
जब हम कल्कि भगवान के मंदिर की बात करते हैं, तो आमतौर पर हाल ही में निर्मित कल्कि धाम की चर्चा होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि राजस्थान की राजधानी जयपुर में भी एक ऐतिहासिक कल्कि मंदिर मौजूद है? यह मंदिर कोई साधारण धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि इसके साथ कई रहस्य और मान्यताएँ जुड़ी हुई हैं।
300 साल पुराना मंदिर, जो भविष्य के भगवान को समर्पित है
जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने 18वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण कराया था। यह मंदिर हवा महल के पास सिरेह ड्योढ़ी बाजार में स्थित है और करीब 300 साल पुराना बताया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि यह मंदिर भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि को समर्पित है – जो अभी तक प्रकट ही नहीं हुए हैं!
मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ भगवान कल्कि की मूर्ति स्थापित है, जिनका अवतरण अभी भविष्य में होना है। इसे दुनिया के उन गिने-चुने मंदिरों में से एक माना जाता है, जो किसी ऐसे अवतार को समर्पित हैं, जिनका प्राकट्य अभी बाकी है।
घोड़े का रहस्य – कब होगा कल्कि अवतार?
इस मंदिर में कई देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित हैं, लेकिन सबसे अनोखी मूर्ति है देवदत्त घोड़े की। मान्यता है कि जब भगवान विष्णु कल्कि अवतार धारण करेंगे, तब वे इसी देवदत्त नामक घोड़े पर सवार होकर अधर्म का नाश करेंगे।
घोड़े की मूर्ति के बाएँ पिछले पैर में एक गड्ढा है, जिसे एक घाव के रूप में देखा जाता है। किंवदंती यह है कि जब यह घाव पूरी तरह से भर जाएगा, तब भगवान कल्कि इस धरती पर प्रकट होंगे और कलियुग का अंत कर सतयुग की स्थापना करेंगे।
जयसिंह द्वितीय की दूरदृष्टि
महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय सिर्फ एक महान शासक ही नहीं, बल्कि खगोलशास्त्र और धर्मशास्त्र के भी गहरे ज्ञाता थे। उनके समय में, दरबार के प्रसिद्ध विद्वान श्री कृष्ण भट्ट ‘कलानिधि’ ने उल्लेख किया था कि राजा ने अपने पोते श्री कलिक जी की स्मृति में इस मंदिर का निर्माण कराया था।
मंदिर का निर्माण वास्तुशास्त्र और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार किया गया था, और यहाँ भगवान विष्णु के नौ अवतारों को भी गर्भगृह के द्वार पर उकेरा गया है। मुख्य गर्भगृह में भगवान कल्कि की मूर्ति माता लक्ष्मी के साथ विराजमान है, जबकि अन्य मूर्तियों में भगवान शिव-पार्वती, भगवान ब्रह्मा और लड्डू गोपाल भी शामिल हैं।
मंदिर की अनूठी वास्तुकला
कल्कि मंदिर की बनावट अन्य मंदिरों से काफी अलग है। यह दक्षिण भारतीय स्थापत्य शैली में निर्मित है और इसमें दो शिखर (गुंबद) हैं – जो आम हिंदू मंदिरों में नहीं देखे जाते।
मंदिर का गर्भगृह संगमरमर से बना हुआ है, जिसमें भगवान विष्णु के सभी अवतारों की नक्काशी की गई है। प्रवेश द्वार जमीन से कुछ सीढ़ियाँ ऊँचा है, और उसके बाद विशाल शिखर के नीचे एक मंडप बना हुआ है, जहाँ भक्त बैठकर पूजा-अर्चना कर सकते हैं।
मंदिर के बारे में कुछ रोचक तथ्य
- सरकारी देखरेख में मंदिर – मंदिर का प्रबंधन राजस्थान सरकार के देवस्थान विभाग द्वारा किया जाता है और यहाँ के पुजारी सरकारी वेतन पर होते हैं।
- साधारण लेकिन प्रभावशाली वास्तुकला – अन्य मंदिरों की तरह इसमें भव्य अलंकरण नहीं हैं, लेकिन इसकी सादगी और शिखर शैली इसे खास बनाती है।
- समय-समय पर बदलते दर्शन के समय – पहले मंदिर सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता था, लेकिन अब सुबह 6 बजे से 10 बजे तक और शाम को अलग-अलग समय पर खुलता है।
- अश्वमेध यज्ञ से संबंध? – कुछ किंवदंतियों के अनुसार, यह मंदिर महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा किए गए अश्वमेध यज्ञ से भी जुड़ा हुआ हो सकता है।
क्या यह दुनिया का अकेला कल्कि मंदिर है?
कई लोग दावा करते हैं कि जयपुर का यह कल्कि मंदिर दुनिया का एकमात्र मंदिर है, जो पूरी तरह से भगवान कल्कि को समर्पित है। हालाँकि, भारत के कुछ अन्य स्थानों पर भी कल्कि मंदिर मौजूद हैं, लेकिन वहाँ भगवान कल्कि की मूर्ति अन्य देवी-देवताओं के साथ स्थापित होती है।
कब होगा भगवान कल्कि का अवतरण?
श्रीमद्भागवत और अन्य धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि जब अधर्म अपने चरम पर होगा, तब भगवान विष्णु कल्कि अवतार के रूप में प्रकट होंगे। कई मान्यताओं के अनुसार, उनका जन्म श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को होगा।
इस ऐतिहासिक और रहस्यमयी मंदिर की कहानियाँ और मान्यताएँ इसे और भी रोचक बनाती हैं। यदि आप कभी जयपुर जाएँ, तो हवा महल के पास स्थित इस मंदिर के दर्शन जरूर करें और यहाँ की अनोखी आध्यात्मिक ऊर्जा को महसूस करें!