बुधवार व्रत का महत्त्व व विधि

बुध के प्रकोप से बचने और जीवन में सभी तरह के सुख-संपत्ति और वैभव की प्राप्ति के लिए विधिवत बुधवार का व्रत करके व्रत कथा सुननी चाहिए। व्रत कथा सुनने के बाद प्रसाद ग्रहण करने से सभी कष्ट दूर होते हैं और मंगल कामना पूरी होती हैं। बुधवार के व्रत में प्रातः उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर शंकर भगवान को भोग लगाएं। धूप, बेलपत्र, अक्षत और घी के दीपक जलाकर शंकर भगवान की पूजा करें। किसी भी रूप में व्रत कथा के बीच में छोड़कर, प्रसाद ग्रहण किए बिना नहीं जाना चाहिए। बुधवार को नियमित रूप से व्रत करने वालों को किसी भी प्रकार का अभाव नहीं रहता। अरिष्ट ग्रहों की शांति के लिए भी बुधवार का व्रत रखने का विधान है। बुधवार के व्रत में प्रयोज्य सामग्री यथासम्भव हरे रंग की रखने का प्रयत्न करें। इससे शीघ्र व उत्तम फल की प्राप्ति होती है।

बुधवार व्रत कथा –  Budhwar Vrat Katha

समतापुर नगर में मधुसूदन नामक एक व्यक्ति रहता था। उसके पास धन-दौलत की कोई कमी नहीं थी। उसकी पत्नी संगीता रूपवान और गुणवंती थी। वह अपने मायके गई हुई थी। अत: मधुसूदन अपनी पत्नी को लेने बलरामपुर गया। बुधवार का दिन था। मधुसूदन ने पत्नी के माता-पिता से संगीता को विदा करने के लिए कहा। इस पर उन्होंने कहा ‘बेटा, आज बुधवार है। बुधवार को किसी शुभ कार्य के लिए यात्रा नहीं करते। लेकिन । मधुसूदन नहीं माना। उसने कहा कि वह ऐसी शुभ-अशुभ की बातों को नहीं मानता। उसके बहुत अधिक आग्रह करने पर संगीता के माता-पिता ने विवश होकर दोनों को विदा कर दिया दोनों ने बैलगाड़ी से यात्रा प्रारम्भ की। लेकिन अभी मधुसूदन दो कोस की यात्रा ही कर पाया था कि उसकी गाड़ी का एक पहिया टूट गया। अतः आगे की यात्रा दोनों ने पैदल ही शुरू की। रास्ते में संगीता को प्यास लगी। उसने अपने पति से जल लाने के लिए कहा तो मधुसूदन उसे एक पेड़ के नीचे बैठाकर जल लेने चला गया। थोड़ी दूर जाने पर मधुसूदन को वृक्षों के झुरमुट के पास एक कुआं दिखाई दिया। उस कुएं की मुंडेर पर रस्सी और बाल्टी भी रखी थी। मधुसूदन ने रस्सी की सहायता से कुएं से जल निकाला और पत्नी के पास पहुंचा। लेकिन पत्नी के पास पहुंचकर मधुसूदन बुरी तरह हैरान हो उठा, क्योंकि उसकी पत्नी के पास उसकी ही शक्ल-सूरत का एक दूसरा व्यक्ति बैठा था। संगीता भी मधुसूदन को देखकर हैरान रह गई। शक्ल-सूरत और वेशभूषा से संगीता दोनों में कोई अंतर नहीं कर पाई। मधुसूदन ने उस व्यक्ति से पूछा, ‘तुम कौन हो और मेरी पत्नी के पास क्यों बैठ हो?’ तब उस व्यक्ति ने कहा, ‘अरे भाई, यह मेरी पत्नी संगीता है। मैं अपनी पत्नी को ससुराल से विदा करा कर लाया हूं। लेकिन तुम कौन हो जो मुझसे ऐसा प्रश्न कर रहे हो?’ मधुसूदन ने लगभग चीखते हुए कहा, ‘तुम जरूर कोई चोर या ठग हो। यह मेरी पत्नी संगीता है। मैं इसे पेड़ के नीचे बैठाकर जल लेने गया था। इस पर उस व्यक्ति ने कहा, ‘अरे भाई! झूठ तो तुम बोल रहे हो। संगीता को प्यास लगने पर जल लेने तो मैं गया था। मैंने तो जल लाकर अपनी पत्नी को पिला भी दिया है। अब तुम चुपचाप यहां से चलते बनो। नहीं तो किसी सिपाही को बुलाकर तुम्हें पकड़वा दूंगा।’

दोनों आपस में लड़ने लगे। उन्हें लड़ते देख बहुत से लोग वहां एकत्र हो गए। नगर के कुछ सिपाही भी वहां आ गए। सिपाही उन दोनों को पकड़कर राजा के पास ले गए। सारी कहानी सुनकर राजा भी कोई निर्णय नहीं कर पाया। संगीता भी उन दोनों में से अपने वास्तविक पति को नहीं पहचान पा रही थी। अत: राजा ने दोनों को कारागार में डाल देने के लिए कहा। राजा के फैसले पर असली मधुसूदन भयभीत हो उठा। तभी आकाशवाणी हुई, ‘मधुसूदन! तूने संगीता के माता-पिता की बात नहीं मानी और बुधवार के दिन अपनी ससुराल से प्रस्थान किया। यह सब भगवान बुधदेव के प्रकोप से हो रहा है।’ मधुसूदन ने बुधदेव से प्रार्थना की, ‘हे भगवान बुधदेव! मुझे क्षमा कर दीजिए। मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई। भविष्य में अब कभी बुधवार के दिन यात्रा नहीं करूंगा और सदैव बुधवार को आप का व्रत किया करूंगा।’ मधुसूदन के प्रार्थना करने पर भगवान बुधदेव ने उसे क्षमा कर दिया। तभी दूसरा व्यक्ति राजा के सामने से गायब हो गया। राजा और दूसरे लोग इस चमत्कार को देख हैरान रह गए। भगवान बुद्ध देव की इस अनुकम्पा से राजा ने मधुसूदन और उसकी पत्नी को सम्मानपूर्वक विदा किया। कुछ दूर चलने पर रास्ते में उन्हें बैलगाड़ी मिल गई। बैलगाड़ी का टूटा हुआ पहिया भी जुड़ा हुआ था। दोनों उसमें बैठकर घर की ओर चल दिए। मधुसूदन और उसकी पत्नी संगीता दोनों बुधवार को व्रत करते हए आनन्दपूर्वक जीवन-यापन करने लगे। भगवान बुधदेव की अनुकम्पा से उनके घर में धन-सम्पत्ति की वर्षा होने लगी। जल्दी ही उनके जीवन में खुशियां भर गई। बुधवार का व्रत करने से सभी मंगलकामनाएं पूरी होती हैं और व्रत करने वाले को बुधवार के दिन किसी आवश्यक काम से यात्रा करने पर कोई कष्ट भी नहीं होता।

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