वैशाख, आषाढ़ तथा माघ के महीनों के अन्तर्गत किसी रविवार को आसमाई की पूजा का विधान है। ज्यादातर बाल बच्चे वाली महिलाएँ यह व्रत करती हैं। इस दिन भोजन में नमक का प्रयोग वर्जित है। ताम्बूल पर सफेद चन्दन से पुतली बनाकर चार कौड़ियों को रखकर पूजा की जाती है। इसके बाद चौक पूरकर कलश स्थापित करते हैं। उसी के समीप आसमाई को स्थापित करते हैं। पूजन के बाद पंडित बारह गोटियों वाला मांगलिक सूत्र व्रत करनेवाली महिला को देता है। भोग लगाते समय इस मांगलिक सूत्र को धारण करना चाहिए।

कथा : एक राजा के एक लड़का था। वह लाड़-प्यार के कारण मनमाने कार्य करने लगा था। वह प्रायः पनघट पर बैठकर गुलेल से पनिहारियों की गगरियाँ फोड़ देता था। राजा ने आज्ञा निकाली कि कोई पनघट पर मिट्टी का घड़ा लेकर न जाए। सभी स्त्रियाँ पीतल व ताँबे के घड़े पानी के लिए ले जाने लगीं। अब राजा के बेटे ने लोहे व शीशे के टुकड़ों से पनिहारियों के घड़े फोड़ने शुरू कर दिये।

इस पर राजा बहुत क्रोधित हुआ तथा अपने पुत्र को देश निकाला की आज्ञा निकाल दी। राजकुमार घोड़े पर बैठकर वनों को चल दिया। रास्ते में उसकी मुलाकात चार बुढ़ियों से हुई। अचानक राजकुमार का चाबुक गिर गया। उसने घोड़े से उतरकर चाबुक उठाया तो बुढ़ियों ने समझा यह हमें प्रणाम कर रहा है। मगर नजदीक पहुँचने पर उन चारों बुढ़ियों के पूछने पर राजकुमार बताता है कि उसने चौथी बुढ़िया (आसमाई) को प्रणाम किया है। इस पर आसमाई बहुत प्रसन्न हुई तथा उसे चार कौड़ियाँ देकर आशीर्वाद दिया कि जब तक ये कौड़ियाँ तुम्हारे पास रहेंगी तुम्हें कोई हरा नहीं सकेगा। समस्त कार्यों में तुम्हें सफलता मिलेगी। आसमाई देवी का आशीर्वाद पाकर राजकुमार आगे चल दिया।

वह भ्रमण करता हुआ एक देश की राजधानी में पहुँचा। वहाँ का राजा जुआ खेलने में पारंगत था। राजकुमार ने राजा को जुए में हरा दिया तथा राजा का राजपाट जुए में जीत लिया। बूढ़े मंत्री की सलाह से राजा उसके साथ अपनी राजकुमारी का विवाह कर देता है।

राजकुमारी बहुत ही शीलवान तथा सदाचारिणी थी। महल में सास-ननद के अभाव में वह कपड़े की गुड़ियों द्वारा सास ननद की परिकल्पना करके उनके चरणों को आँचल पसारकर छूती तथा आशीर्वाद पाने लगी। एक दिन यह सब करते हुए राजकुमार ने देख लिया और पूछा तुम यह क्या करती हो? राजकुमारी ने सास-ननद की सेवा करने की अपनी इच्छा बताई। इस पर राजकुमार सेना लेकर अपने घर को चल दिया। अपने पिता के यहाँ पहुँचने पर उसने देखा कि उसके माँ बाप निरन्तर रोते रहने से अंधे हो गये हैं। पुत्र का समाचार पाकर राजा रानी बहुत प्रसन्न हुए। महल में प्रवेश करने पर बहू सास के चरण छूती है। सास के आशीर्वाद से कुछ दिन बाद उनके यहाँ एक सुन्दर बालक का जन्म होता है। आसमाई की कृपा से राजा रानी के नेत्रों की ज्योति लौट आती है तथा उनके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं ।

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