भक्त प्रह्लाद की मान-मर्यादा की रक्षा हेतु वैशाख शुक्ल चतुर्दशी के दिन भगवान नृसिंह के रूप में प्रकट हुए थे। इसलिए यह तिथि एक पर्व के रूप में मनायी जाती है।

व्रत इस व्रत को प्रत्येक नर-नारी कर सकते हैं। व्रती को दोपहरी में वैदिक मंत्रों का उच्चारण करके स्नान करना चाहिए। नृसिंह भगवान की मूर्ति को गंगाजल से स्नान कराकर में स्थापित करके विधिपूर्वक पूजन करने का विधान है। ब्राह्मणों को यथा शक्ति दान दक्षिणा, वस्त्र आदि देना अभिष्ट है। सूर्यास्त के समय मन्दिर में जाकर आरती करके ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। इस विधि से व्रत करके उसका पारण करने वाला व्यक्ति लौकिक दुःखों से मुक्त हो जाता है।

कथा राजा कश्यप के हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु नाम के दो पुत्र थे राजा के मरने के बाद बड़ा पुत्र हिरण्याक्ष राजा बना। परन्तु हिरण्याक्ष बड़ा क्रूर राजा निकला। वाराह भगवान् ने उसे मौत के घाट उतार दिया। इसी का बदला लेने के लिए उसके भाई हिरण्यकशिपु ने भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया। तप-सिद्धि होने पर उसने भगवान शिव से वर माँगा -“मैं न अन्दर मरू न बाहर, न दिन में मरू न रात न भूमि पर मरू न आकाश में, न जल में मरू। न अस्त्र से मरू न शस्त्र से, न मनुष्य के हाथों मरूँ न पशु द्वारा मरू। भगवान शिव तथाअस्तु कहकर अन्तर्ध्यान हो गए। यह वरदान पाकर वह अपने को अजर अमर समझने लगा।

उसने अपने को ही भगवान घोषित कर दिया। उसके अत्याचार इतने बढ़ गए कि चारों ओर त्राहिमाम त्राहिमाम मच गया। इसी समय उसके यहाँ एक बालक का जन्म हुआ। जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया। प्रह्लाद के बड़ा होने पर एक ऐसी घटना घटी की प्रह्लाद ने अपने पिता को भगवान मानने से इंकार कर दिया। घटना यह थी कि कुम्हार के आवे में एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे। आवे में आग लगाने पर भी बिल्ली के बच्चे जीवित निकल आए। प्रह्लाद के मन में भगवान के प्रति निष्ठा बढ़ गई।

हिरण्यकशिपु ने अपने बेटे को बहुत समझाया कि मैं ही भगवान हूँ। परन्तु वह इस बात को मानने को तैयार नहीं हुआ। हिरण्यकशिपु ने उसे मारने के लिए एक खम्भे से बाँध दिया और तलवार से वार किया। खम्भा फाड़कर भयंकर शब्द करते हुए भगवान नृसिंह प्रकट हुए। भगवान् का आधा शरीर पुरुष का तथा आधा शरीर सिंह का था। उन्होंने हिरण्यकशिपु को उठाकर अपने घुटनों पर रखा और दहलीज पर ले जाकर गोधुलि बेला में अपने नाखुनों से उसका पेट फाड़ डाला। ऐसे विचित्र भगवान का लोगमंगल के लिए स्मरण करके ही इस दिन व्रत करने का माहात्म्य है।

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