हिंदू धर्म में, संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व है। यह पावन दिन भगवान गणेश को समर्पित है, जिन्हें विघ्नहर्ता और मंगलकारी के रूप में पूजा जाता है। हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है। इस दिन व्रत रखने और भगवान गणेश की पूजा करने से सभी संकट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
संकष्टी चतुर्थी कब है?
‘संकष्टी’ शब्द का अर्थ है “विघ्नों का नाश करने वाली”। और ‘चतुर्थी’ का अर्थ है “चौथा दिन”। इस प्रकार, संकष्टी चतुर्थी हर माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन विशेष रूप से विघ्नहर्ता भगवान गणेश की उपासना और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन व्रत करने से समस्त कष्टों और विघ्नों का नाश होता है।
संकष्टी चतुर्थी का महत्व
- विघ्नहर्ता गणेश: भगवान गणेश को सभी प्रकार के विघ्नों को दूर करने वाला माना जाता है। उनकी कृपा से जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और सफलता के मार्ग प्रशस्त होते हैं।
- मंगलकारी: गणेश जी मंगल के देवता हैं। उनकी पूजा से घर में सुख-समृद्धि आती है और परिवार में खुशहाली बनी रहती है।
- मनोकामना पूर्ति: संकष्टी चतुर्थी के दिन सच्चे मन से की गई प्रार्थनाएं भगवान गणेश जरूर सुनते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
- आध्यात्मिक उन्नति: इस व्रत को करने से मन की शुद्धि होती है और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग खुलता है।
संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि
- प्रातःकाल स्नान: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- व्रत का संकल्प: भगवान गणेश के सामने व्रत का संकल्प लें और दिन भर उपवास रखने का प्रण करें।
- पूजा की तैयारी: भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र को एक साफ स्थान पर स्थापित करें। फूल, धूप, दीप, नैवेद्य, दूर्वा आदि पूजन सामग्री तैयार रखें।
- गणेश पूजन: गणेश जी को सिंदूर, अक्षत, फूल, दूर्वा अर्पित करें। धूप-दीप जलाएं और गणेश मंत्र का जाप करें।
- आरती: गणेश जी की आरती करें और प्रसाद वितरित करें।
- व्रत का पारण: शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण करें।
संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा
प्राचीन काल में एक बार देवताओं और असुरों के बीच युद्ध हुआ। देवता इस युद्ध में हारने लगे। तब उन्होंने भगवान शिव से मदद मांगी। शिव जी ने अपने पुत्र गणेश को युद्ध में भेजा। गणेश जी ने अपनी बुद्धि और शक्ति से असुरों को परास्त कर दिया और देवताओं को विजय दिलाई। इसी खुशी में देवताओं ने चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाने का निर्णय लिया।
संकष्टी चतुर्थी पर क्या खाएं?
संकष्टी चतुर्थी के व्रत में फलाहार किया जाता है। आप फल, कुट्टू के आटे की पूड़ी, साबूदाना खिचड़ी, आलू, मूंगफली आदि खा सकते हैं।
संकष्टी चतुर्थी पर क्या न करें?
- तामसिक भोजन का सेवन न करें।
- झूठ, चुगली, हिंसा आदि से दूर रहें।
- क्रोध, लोभ, मोह आदि विकारों से बचें।