योगिनी एकादशी Yogini Ekadashi का हिन्दू धर्म में खास महत्व बताया गया है ऐसी मान्यता है। इस एकादशी का व्रत करने से व्रती को बुरे से बुरे पापकर्मों के पाश से मुक्ति मिल जाती है। और सारी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं। आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहा जाता है।
इस व्रत में गरीब ब्राह्मणों को दान देना चाहिए। इस व्रत के प्रभाव से पीपल का वृक्ष को काटने जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं। भक्त का कुष्ठरोग इसके पुण्य के प्रताप से दूर होता है। और स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है।
पूजा विधान – योगिनी एकादशी के दिन सुबह घर की साफ-सफाई करके स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवान विष्णु की मूर्ति को गंगा जल से स्नान कराकर, चंदन, रोली, धूप, दीप, पुष्प, नारियल और तुलसी से पूजन, आरती चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ पीपल के वृक्ष की पूजा का भी विधान है।
कथा: पद्मपुराण में योगिनी एकादशी की कथा इस प्रकार बताई गई है। प्राचीन काल अलकापुरी नगरी में कुबेर राज करते थे। वे भगवान शिव के परम भक्त थे। धन कुबेर के यहाँ एक माली रहता था, जिसका नाम हेम था। वह प्रतिदिन भगवान शंकर की पूजा हेतु अपने स्वामी कुबेर की आज्ञानुसार मानसरोवर से फूल लाता था। एक दिन वह अपनी स्त्री के साथ कामोन्मत होकर विहार कर रहा था। इस प्रकार उसे फूल लाने में देरी हो गई। और दोपहर तक कुबेर के पास न पहुंचा। इस पर कुबेर ने अपने सैनिकों को हेम माली के घर भेजा और राजदरबार में लाने का आदेश दे दिया। हेम माली राजदरबार में पहुंचा, तो कुबेर उस पर बहुत क्रोधित हुए। तूने मेरे परमपूजनीय ईश्वर भगवान शिव का बहुत अनादर किया है।
मैं तुझे शाप देता हूं कि तू स्त्री का वियोग सहने और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी की बीमारी से पीड़ित रहेगा। कुबेर के श्राप से वह कोढ़ी बन गया।
इस रूप में वह घूमता हुआ महर्षि मार्कण्डेय के आश्रम में पहुँचा। महर्षि मार्कण्डेय के पूछने पर उसने सारी बात बताई।उसकी ऐसी हालत देखकर महर्षि मार्कण्डेय उस पर दया आ गई।
मार्कण्डेय ऋषि ने उसे योगिनी एकादशी का व्रत रखने का सलाह दी। हेम माली ने विधिपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत किया. इस व्रत के प्रभाव से हेम स्वस्थ हो गया और श्राप से मुक्ति पाई।