गणपती मूरत बस गई जेह मन पार उतर गयो सोय,
गणपती मूरत बस गई जेह मन पार उतर गयो सोय,
अपनी धुन में होय रहत फिर चाहे जो भी हो,
गणपती मूरत बस गई जेह मन पार उतर गयो सोय।

ऐसा नही है जग में,
ऐसा नही है जग में जैसा कष्ट विनाशन है ये,
मंगल दाता शुभगण कानन रूप गजानन है ये,
ज्ञानी ध्यानी अंतर्यामी जाने ये कोय,
गणपती मूरत बस गई जेह मन पार उतर गयो सोय।

सेवा करे जो इसकी,
सेवा करे जो इसकी पा लेता है मुक्ति धाम,
आज नही तो कल हो जाये जग में उसका नाम,
इसके चरणामृत के जल से अपने मन को धोय,
गणपती मूरत बस गई जेह मन पार उतर गयो सोय।

पूजा करे सब इसकी,
पूजा करे सब इसकी गाये गीत नये राहो में,
जब जब आये गणपती उत्सव धूम मचे राहो में,
मन की इच्छा कर दे पूरी जाये ना खाली कोय,
गणपती मूरत बस गई जेह मन पार उतर गयो सोय,
गणपती मूरत बस गई जेह मन पार उतर गयो सोय….

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