श्री रामचंद्र भगवान की है आरती,
भक्तों को भव सिंधु से है तारती,
यह पुरुष श्रेष्ठ यह शक्ति श्रेष्ठ
पुरुषोत्तम यह कहलाता
है जिनकी को शिला माता
श्री कृष्ण यही श्री राम यही
जग मंगल की आरती
भक्तों को भव सिंधु से है तारती
है चार भ्रात और सिय मात
दरबार राम कहलाता
है जीवन का सुख दाता
है ब्रह्म यही है विष्णु यही
दशरथ नंदन की आरती
भक्तों को भव सिधु से है तारती
श्री भरतलाल श्री लखन लाल
करते सेवा तन मन से
भजते हनुमत निज मन से
यह दुख हरता सुख दाता
श्री राघवेंद्र की आरती
भक्तों को भव सिधु से है तारती
Author: ज्ञानू शुक्ल जी