जय जय आरती आदि जिणंदा,
नाभिराया मरूदेवीको नंदा. जय

पहेली आरती पूजा कीजे,
नरभव पामीने ल्हावो लीजे. जय

दूसरी आरती दीन दयाळा,
धुळेवा मंडपमां जग अजवाळा. जय

तीसरी आरती त्रिभुवन देवा,
सुरनर इन्द्र करे तोरी सेवा. जय

चोथी आरती चउगति चूरे,
मनवांछित फळ शिवसुख पूरे. जय

पंचमी आरती पुण्य उपाया,
मूळचंदे ऋषभ गुण गाया. जय

Author: राजेंद्र जैन जी

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