षष्टं कात्यायनी माँ नवदुर्गा अवतार

षष्टं कात्यायनी माँ, नवदुर्गा अवतार।
छटे नवरात्र इसी ,रूप का हो दीदार।।
महर्षि कात्यायन के ,घर प्रगटि जो मात।
कात्यायनी नाम से ,हुई विश्व विख्यात।।
चतुर्भुजी सिंहवाहिनी ,करे खूब टंकार।
मारे दानव दुष्टजन ,देव करें जय जयकार।।
अति सुन्दर परमेश्वरी।,शोभा अति अभिराम।
चंद्रमुखी दिव्यरूपिणी ,दिव्य दर्शन दिव्य धाम।।
करुणामयी कल्याणमयी ,बड़ी दयालु मात।
भवबाधा भवहारिणी ,कटे कोटि अपराध।।
कात्यायनी माता की ,महिमा अपरम्पार।
ब्रजमंडल अधिष्ठात्री ,पूजत है संसार।।
पतिरूप श्री कृष्ण का ,पानें अटल सुहाग।
ब्रजगोपिन पूजा करी ,कात्यायनी मात।।
मन वचन क्रम प्रेम से ,सिमरे जो नरनार।
पाप ताप संताप सभी ,मिटें विघन विकार।।
कात्यायनी उपासना ,देती है फल चार।
कहै “मधुप” मिलकर करो ,माँ की जय जयकार।।

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