अरी तुम कोन हो री बन में फूलवा बीनन हारी।
रतन जटित हो बन्यो बगीचा फूल रही फुलवारी॥१॥
कृष्णचंद बनवारी आये मुख क्यों न बोलत सुकुमारी।
तुम तो नंद महर के ढोटा हम वृषभान दुलारी॥२॥
या बन में हम सदा बसत हैं हमही करत रखवारी।
बीन बूझे बीनत फूलवा जोबन मद मतवारी॥३॥
तब ललिता एक मतो उपाय सेन बताई प्यारी।
सूरदास प्रभु रसबस कीने विरह वेदना टारी॥४।

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