
संदेसो दैवकी सों कहियौ।
संदेसो दैवकी सों कहियौ।`हौं तौ धाय तिहारे सुत की, मया करति नित रहियौ॥जदपि टेव जानति तुम उनकी, तऊ मोहिं कहि आवे।प्रातहिं उठत तुम्हारे कान्हहिं माखन-रोटी भावै॥तेल उबटनों अरु तातो जल देखत हीं भजि जाते।जोइ-जोइ मांगत...
श्री कृष्ण जी के मधुर भजन, गीत और लीलाएँ! राधा-कृष्ण प्रेम की दिव्य अनुभूति। सभी भक्ति गीत BhaktiRas.in पर।
संदेसो दैवकी सों कहियौ।`हौं तौ धाय तिहारे सुत की, मया करति नित रहियौ॥जदपि टेव जानति तुम उनकी, तऊ मोहिं कहि आवे।प्रातहिं उठत तुम्हारे कान्हहिं माखन-रोटी भावै॥तेल उबटनों अरु तातो जल देखत हीं भजि जाते।जोइ-जोइ मांगत...
जोग ठगौरी ब्रज न बिकैहै।यह ब्योपार तिहारो ऊधौ, ऐसोई फिरि जैहै॥यह जापे लै आये हौ मधुकर, ताके उर न समैहै।दाख छांडि कैं कटुक निबौरी को अपने मुख खैहै॥मूरी के पातन के कैना को मुकताहल दैहै।सूरदास,...
नीके रहियौ जसुमति मैया।आवहिंगे दिन चारि पांच में हम हलधर दोउ भैया॥जा दिन तें हम तुम तें बिछुरै, कह्यौ न कोउ `कन्हैया’।कबहुं प्रात न कियौ कलेवा, सांझ न पीन्हीं पैया॥वंशी बैत विषान दैखियौ द्वार अबेर...
उधो, मन न भए दस बीस।एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अवराधै ईस॥सिथिल भईं सबहीं माधौ बिनु जथा देह बिनु सीस।स्वासा अटकिरही आसा लगि, जीवहिं कोटि बरीस॥तुम तौ सखा स्यामसुन्दर के, सकल जोग के...
ऊधो, होहु इहां तैं न्यारे।तुमहिं देखि तन अधिक तपत है, अरु नयननि के तारे॥अपनो जोग सैंति किन राखत, इहां देत कत डारे।तुम्हरे हित अपने मुख करिहैं, मीठे तें नहिं खारे॥हम गिरिधर के नाम गुननि बस,...
फिर फिर कहा सिखावत बात।प्रात काल उठि देखत ऊधो, घर घर माखन खात॥जाकी बात कहत हौ हम सों, सो है हम तैं दूरि।इहं हैं निकट जसोदानन्दन प्रान-सजीवनि भूरि॥बालक संग लियें दधि चोरत, खात खवावत डोलत।सूर,...
ऊधो, मन माने की बात।दाख छुहारो छांड़ि अमृतफल, बिषकीरा बिष खात॥जो चकोर कों देइ कपूर कोउ, तजि अंगार अघात।मधुप करत घर कोरि काठ में, बंधत कमल के पात॥ज्यों पतंग हित जानि आपुनो दीपक सो लपटात।सूरदास,...
ऊधो, हम लायक सिख दीजै।यह उपदेस अगिनि तै तातो, कहो कौन बिधि कीजै॥तुमहीं कहौ, इहां इतननि में सीखनहारी को है।जोगी जती रहित माया तैं तिनहीं यह मत सोहै॥कहा सुनत बिपरीत लोक में यह सब कोई...
निरगुन कौन देश कौ बासी।मधुकर, कहि समुझाइ, सौंह दै बूझति सांच न हांसी॥को है जनक, जननि को कहियत, कौन नारि को दासी।कैसो बरन, भेष है कैसो, केहि रस में अभिलाषी॥पावैगो पुनि कियो आपुनो जो रे...
कहियौ जसुमति की आसीस।जहां रहौ तहं नंदलाडिले, जीवौ कोटि बरीस॥मुरली दई, दौहिनी घृत भरि, ऊधो धरि लई सीस।इह घृत तौ उनहीं सुरभिन कौ जो प्रिय गोप-अधीस॥ऊधो, चलत सखा जुरि आये ग्वाल बाल दस बीस।अबकैं ह्यां...
कहां लौं कहिए ब्रज की बात।सुनहु स्याम, तुम बिनु उन लोगनि जैसें दिवस बिहात॥गोपी गाइ ग्वाल गोसुत वै मलिन बदन कृसगात।परमदीन जनु सिसिर हिमी हत अंबुज गन बिनु पात॥जो कहुं आवत देखि दूरि तें पूंछत...
तबतें बहुरि न कोऊ आयौ।वहै जु एक बेर ऊधो सों कछुक संदेसों पायौ॥छिन-छिन सुरति करत जदुपति की परत न मन समुझायौ।गोकुलनाथ हमारे हित लगि द्वै आखर न पठायौ॥यहै बिचार करहु धौं सजनी इतौ गहरू क्यों...