तर्ज – मानो तो मैं गंगा माँ हूँ

मानो तो वो शिव शंकर है,
ना मानो तो पथ्थर प्राणी,
विश्वास है जिनके मन में,
मिलते है उसे शिव दानी,
मानो तो वो शिव शंकर है,
ना मानो तो पत्थर प्राणी…..

युग युग से सब जपते आये,
जिनके नाम की माला,
स्वयं है बैठा ज्योतिर्लिंग में,
शंकर डमरू वाला,
सब वेद पुराण बताते,
शिवलिंग की अमर कहानी,
मानो तो वो शिव-शंकर है,
ना मानो तो पत्थर प्राणी……

नर नारी क्या देवी देव भी,
आकर शीश नवाते,
भोले की परिकर्मा करके,
हर हर बम बम गाते,
जिनके चरणों की सेवा,
करती गौरा महाराणी,
मानो तो वो शिव-शंकर है,
ना मानो तो पत्थर प्राणी……

श्री राम प्रभु भी आकर,
चरणों में फूल चढ़ाये,
इस पथ्थर की पूजा कर वो,
मन वांछित फल पाए,
लंका जीती और मारे,
रावण जैसे अभिमानी,
मानो तो वो शिव-शंकर है,
ना मानो तो पत्थर प्राणी……

डमरू वाले की चौखट पर,
कोई भी प्राणी आये,
सच्चे मन से बस एक लौटा,
गंगाजल का चढ़ाये,
शर्मा कट जाती उसकी,
जीवन भर की परेशानी,
मानो तो वो शिव-शंकर है,
ना मानो तो पत्थर प्राणी……

Author: लखबीर सिंह लक्खा

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