मात-पिता सुत नारी,ओर इस झूठी दुनिया दारी को
छोङ कर के एक जाना,होगा की नही

क्यो भूले जीवन के राही,दूर कही तेरी मंजिल
सजी धजी यहा रह जाएगी,दुनिया की झूठी महफिल
इस महफिल को पार पाना,होगा की नही

लख चोरासी भटकत तुने,पाया है मानव तन को
राम सुमिरले सुकृत करले,सफल बना इस जीवन को
इस जीवन को सफल बनाना,होगा की नही

क्यो करता है मेरी-मेरी,कोई चीज नही तेरी
कंचन जैसी सुन्दर काया,बज जाए मिट्टी की ढेरी
अन्त समय तुझको पछताना,होगा की नही

जिसने जनम लिया है जग मे,एक दिन उनको जाना है
इक आए इक जाए जगत से,दुनियां मुसाफिर खाना है
सदानन्द कहे हरि गुण गाना,होगा की नही

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