
माँ काली चालीसा
माँ काली चालीसा !! दोहा !! जयकाली कलिमलहरण,महिमा अगम अपार !महिष मर्दिनी कालिका,देहु अभय अपार ॥ !! चौपाई !! !! अरि मद मान मिटावन हारी ।मुण्डमाल गल सोहत प्यारी ॥ !! अष्टभुजी सुखदायक माता ।दुष्टदलन...
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श्री करणी चालीसा ॥ दोहा ॥जय गणेश जय गज बदन,करण सुमंगल मूल ।करहू कृपा निज दास पर,रहू सदा अनुकूल ॥ जय जननी जगदिश्वरी,कह कर बारम्बार ।जगदम्बा करणी सुयश,वरणऊ मति अनुसार ॥ सुमिरौ जय जगदम्ब भवानी...
दुर्गा चालिसा नमो नमो दुर्गे सुख करनी।नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥ निरंकार है ज्योति तुम्हारी।तिहूं लोक फैली उजियारी॥ शशि ललाट मुख महाविशाला।नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥ रूप मातु को अधिक सुहावे।दरश करत जन अति सुख पावे॥...
श्री सतगुरु चालीसा ॐ नमो गुरुदेव जी, सबके सरजन हार,व्यापक अंतर बाहर में, पार ब्रह्म करतार ,देवन के भी देव हो, सिमरू मैं बारम्बार,आपकी किरपा बिना, होवे न भव से पार ,ऋषि-मुनि सब संत जन,...
।। दोहा ।।मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।मनोकामना सिद्घ करि, परुवहु मेरी आस || ।। सोरठा ।।यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका || ।। चौपाई ।।सिन्धु...
जय गणेश गिरिजा सुवनमंगल कर्ण किरपालदीन के दुःख दूर करि,कीजये नाथ निहाल, जय-जय श्री शनिदेव प्रभु,सुनहु विनय महराज।करहुं कृपा हे रवि तनय,राखहु जन की लाज।। जयति जयति शनिदेव दयाला।करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥ चारि भुजा, तनु...
॥ दोहा ॥ मूर्ति स्वयंभू शारदा, मैहर आन विराज ।माला, पुस्तक, धारिणी,वीणा कर में साज ॥ ॥ चौपाई ॥ जय जय जय शारदा महारानी,आदि शक्ति तुम जग कल्याणी। रूप चतुर्भुज तुम्हरो माता,तीन लोक महं तुम...
॥ दोहा ॥ जय गिरी तनये दक्षजे शम्भू प्रिये गुणखानि।गणपति जननी पार्वती अम्बे ! शक्ति ! भवानि॥ ॥ चौपाई ॥ ब्रह्मा भेद न तुम्हरे पावे ,पंच बदन नित तुमको ध्यावे । षड्मुख कहि न सकत...
॥ दोहा ॥ देवि पूजित, नर्मदा, महिमा बड़ी अपार।चालीसा वर्णन करत, कवि अरु भक्त उदार॥ इनकी सेवा से सदा, मिटते पाप महान।तट पर कर जप दान नर, पाते हैं नित ज्ञान ॥ ॥ चौपाई ॥...
॥ दोहा ॥ श्री गणपति पद नाय सिर, धरि हिय शारदा ध्यान |संतोषी मां की करुँ, कीर्ति सकल बखान॥ ॥ चौपाई ॥ जय संतोषी मां जग जननी,खल मति दुष्ट दैत्य दल हननी। गणपति देव तुम्हारे...
॥ दोहा ॥ गरुड़ वाहिनी वैष्णवी त्रिकुटा पर्वत धामकाली, लक्ष्मी, सरस्वती, शक्ति तुम्हें प्रणाम ॥ चौपाई ॥ नमो: नमो: वैष्णो वरदानी, कलि काल मे शुभ कल्याणी।मणि पर्वत पर ज्योति तुम्हारी, पिंडी रूप में हो अवतारी॥...
॥ दोहा ॥ विश्वेश्वर पदपदम की रज निज शीश लगाय ।अन्नपूर्णे, तव सुयश बरनौं कवि मतिलाय । ॥ चौपाई ॥ नित्य आनंद करिणी माता,वर अरु अभय भाव प्रख्याता ॥ जय! सौंदर्य सिंधु जग जननी,अखिल पाप...