मेरे मन दे मंदिर विच वसेया मेरा गुरु रविदास प्यारा

दिल भागो भाग होया मेरा होया अखिया नु दर्शन तेरा
मिट गई भूख प्यास मेरी जद मिलिया तेरा सहारा
मेरे मन दे मंदिर विच वसेया मेरा गुरु रविदास प्यारा

हर पासे खुशिया खेडे ने कैसे राग हवावा छेड़े ने
हूँ संगता सिफता कर दिया ने सोने कांशी वाले धाम दियां
पौना निज बगन सुगन्दा जी मेरे सतगुरु जी दे नाम दियां

हाथ मेहर दा सिर मेरे ते गुरु रविदास दा पूरा
सुफना मेरा इक भी नहियो छ्ड़ेया ओहने अधुरा
एहदे नाम नु जप के होया मेरा पार उतारा
मेरे मन दे मंदिर विच वसेया मेरा गुरु रविदास प्यारा

जिथे बैठे सत गुरु मेरे धन होईआ ओ थावा
गुरु रविदास दी सेवा कर के हर हर नाम ध्यावा,
शरदा नाल संगता सुन दिया ने गल्ला सतगुरु दे पैगाम दिया
पौना निज बगन सुगन्दा जी मेरे सतगुरु जी दे नाम दियां

शुकर तेरा गुरु रविदास मेनू दिता नाम बथेरा
अपना कोलो कुझ भी नही मेरे जो कुझ है सो तेरा
मैं हां भूलन हार मालका तू सब बक्शन हारा
मेरे मन दे मंदिर विच वसेया मेरा गुरु रविदास प्यारा

मन मेरे दे कोरे सी जेह्ड़े होए रंगीले भर के
मूसापुरिया सोनू लिखदा अज जो तेरे करके,
नेड़े होके सुनिया ने तुसी अरजा बंदे आम दिया
पौना निज बगन सुगन्दा जी मेरे सतगुरु जी दे नाम दियां

Author: Unknown Claim credit

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