मन तोये भुले भक्ति बिसारी मन तो ये भुले भक्ति बिसारी ।
शिरपर काल सदासर सांधत देखत बाजीहारी ॥ध्रु०॥
कौन जमनातें सकृत कीनो मनुख देहधरी ।
तामे नीच करम रंग रच्यो दुष्ट बासना धरी ॥ मन० ॥१॥
बालपनें खेलनमें खोयो जीवन गयो संग नारी ।
वृद्ध भयो जब आलस आयो सर्वस्व हार्यो जुवारी ॥ मन०॥२॥
अजहुं जरा रोग नहीं व्यापी तहांलो भजलो मुरारी ।
कहे सूर तूं चेत सबेरो अंतकाल भय भारी ॥ मन०॥३॥
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