ऊधो, होहु इहां तैं न्यारे।
ऊधो, होहु इहां तैं न्यारे।तुमहिं देखि तन अधिक तपत है, अरु नयननि के तारे॥अपनो जोग सैंति किन राखत, इहां देत कत डारे।तुम्हरे हित अपने मुख करिहैं, मीठे तें नहिं खारे॥हम गिरिधर के नाम गुननि बस,...
ऊधो, होहु इहां तैं न्यारे।तुमहिं देखि तन अधिक तपत है, अरु नयननि के तारे॥अपनो जोग सैंति किन राखत, इहां देत कत डारे।तुम्हरे हित अपने मुख करिहैं, मीठे तें नहिं खारे॥हम गिरिधर के नाम गुननि बस,...
फिर फिर कहा सिखावत बात।प्रात काल उठि देखत ऊधो, घर घर माखन खात॥जाकी बात कहत हौ हम सों, सो है हम तैं दूरि।इहं हैं निकट जसोदानन्दन प्रान-सजीवनि भूरि॥बालक संग लियें दधि चोरत, खात खवावत डोलत।सूर,...
ऊधो, मन माने की बात।दाख छुहारो छांड़ि अमृतफल, बिषकीरा बिष खात॥जो चकोर कों देइ कपूर कोउ, तजि अंगार अघात।मधुप करत घर कोरि काठ में, बंधत कमल के पात॥ज्यों पतंग हित जानि आपुनो दीपक सो लपटात।सूरदास,...
ऊधो, हम लायक सिख दीजै।यह उपदेस अगिनि तै तातो, कहो कौन बिधि कीजै॥तुमहीं कहौ, इहां इतननि में सीखनहारी को है।जोगी जती रहित माया तैं तिनहीं यह मत सोहै॥कहा सुनत बिपरीत लोक में यह सब कोई...
निरगुन कौन देश कौ बासी।मधुकर, कहि समुझाइ, सौंह दै बूझति सांच न हांसी॥को है जनक, जननि को कहियत, कौन नारि को दासी।कैसो बरन, भेष है कैसो, केहि रस में अभिलाषी॥पावैगो पुनि कियो आपुनो जो रे...
कहियौ जसुमति की आसीस।जहां रहौ तहं नंदलाडिले, जीवौ कोटि बरीस॥मुरली दई, दौहिनी घृत भरि, ऊधो धरि लई सीस।इह घृत तौ उनहीं सुरभिन कौ जो प्रिय गोप-अधीस॥ऊधो, चलत सखा जुरि आये ग्वाल बाल दस बीस।अबकैं ह्यां...
कहां लौं कहिए ब्रज की बात।सुनहु स्याम, तुम बिनु उन लोगनि जैसें दिवस बिहात॥गोपी गाइ ग्वाल गोसुत वै मलिन बदन कृसगात।परमदीन जनु सिसिर हिमी हत अंबुज गन बिनु पात॥जो कहुं आवत देखि दूरि तें पूंछत...
तबतें बहुरि न कोऊ आयौ।वहै जु एक बेर ऊधो सों कछुक संदेसों पायौ॥छिन-छिन सुरति करत जदुपति की परत न मन समुझायौ।गोकुलनाथ हमारे हित लगि द्वै आखर न पठायौ॥यहै बिचार करहु धौं सजनी इतौ गहरू क्यों...
अब या तनुहिं राखि कहा कीजै।सुनि री सखी, स्यामसुंदर बिनु बांटि विषम विष पीजै॥के गिरिए गिरि चढ़ि सुनि सजनी, सीस संकरहिं दीजै।के दहिए दारुन दावानल जाई जमुन धंसि लीजै॥दुसह बियोग अरी, माधव को तनु दिन-हीं-दिन...
नाथ, अनाथन की सुधि लीजै।गोपी गाइ ग्वाल गौ-सुत सब दीन मलीन दिंनहिं दिन छीज॥नैन नीर-धारा बाढ़ी अति ब्रज किन कर गहि लीजै।इतनी बिनती सुनहु हमारी, बारक तो पतियां लिखि दीजै॥चरन कमल-दरसन नवनौका करुनासिन्धु जगत जसु...
जो पै हरिहिं न शस्त्र गहाऊं।तौ लाजौं गंगा जननी कौं सांतनु-सुतन कहाऊं॥स्यंदन खंडि महारथ खंडौं, कपिध्वज सहित डुलाऊं।इती न करौं सपथ मोहिं हरि की, छत्रिय गतिहिं न पाऊं॥पांडव-दल सन्मुख ह्वै धाऊं सरिता रुधिर बहाऊं।सूरदास, रणविजयसखा...
हरि, तुम क्यों न हमारैं आये।षटरस व्यंजन छाड़ि रसौई साग बिदुर घर खाये॥ताकी कुटिया में तुम बैठे, कौन बड़प्पन पायौ।जाति पांति कुलहू तैं न्यारो, है दासी कौ जायौ॥मैं तोहि कहौं अरे दुरजोधन, सुनि तू बात...