ऐसी प्रीति की बलि जाऊं
ऐसी प्रीति की बलि जाऊं।सिंहासन तजि चले मिलन कौं, सुनत सुदामा नाउं।कर जोरे हरि विप्र जानि कै, हित करि चरन पखारे।अंकमाल दै मिले सुदामा, अर्धासन बैठारे।अर्धांगी पूछति मोहन सौं, कैसे हितू तुम्हारे।तन अति छीन मलीन...
ऐसी प्रीति की बलि जाऊं।सिंहासन तजि चले मिलन कौं, सुनत सुदामा नाउं।कर जोरे हरि विप्र जानि कै, हित करि चरन पखारे।अंकमाल दै मिले सुदामा, अर्धासन बैठारे।अर्धांगी पूछति मोहन सौं, कैसे हितू तुम्हारे।तन अति छीन मलीन...
सोभित कर नवनीत लिए।घुटुरुनि चलत रेनु तन मंडित मुख दधि लेप किए॥चारु कपोल लोल लोचन गोरोचन तिलक दिए।लट लटकनि मनु मत्त मधुप गन मादक मधुहिं पिए॥कठुला कंठ वज्र केहरि नख राजत रुचिर हिए।धन्य सूर एकौ...
आजु मैं गाई चरावन जैहोंबृंदाबन के भाँति भाँति फल, अपने कर मैं खैहौं।ऎसी बात कहौ जनि बारे, देखौ अपनी भांति।तनक तनक पग चलिहौ कैसें, आवत ह्वै है राति।प्रात जात गैया लै चारन, घर आवत है...
हमारे हरि हारिल की लकरी.मन क्रम वचन नंद-नंदन उर, यह दृढ करि पकरी.जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि,कान्ह-कान्ह जकरी.सुनत जोग लागत है ऐसो, ज्यौं करूई ककरी.सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए,देखी सुनी न करी.यह तौ ‘सूर’ तिनहिं...
ऊधौ,तुम हो अति बड़भागीअपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागीपुरइनि पात रहत जल भीतर,ता रस देह न दागीज्यों जल मांह तेल की गागरि,बूँद न ताकौं लागीप्रीति-नदी में पाँव न बोरयौ,दृष्टि न रूप परागी‘सूरदास’ अबला...
अब मैं जानी देह बुढ़ानी ।सीस, पाउँ, कर कह्यौ न मानत, तन की दसा सिरानी।आन कहत, आनै कहि आवत, नैन-नाक बहै पानी।मिटि गई चमक-दमक अँग-अँग की, मति अरु दृष्टि हिरानी।नाहिं रही कछु सुधि तन-मन की,...
हरि हैं राजनीति पढि आए.समुझी बात कहत मधुकर के,समाचार सब पाए.इक अति चतुर हुतै पहिलें हीं,अब गुरुग्रंथ पढाए.बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी , जोग सँदेस पठाए.ऊधौ लोग भले आगे के, पर हित डोलत धाए.अब अपने...
मन की मन ही माँझ रही.कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही.अवधि असार आस आवन की,तन मन विथा सही.अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि,विरहिनि विरह दही.चाहति हुती गुहारि जितहिं तैं, उर तैं धार बही .‘सूरदास’अब...
प्रात समय नवकुंज महल में श्री राधा और नंदकिशोर ॥दक्षिणकर मुक्ता श्यामा के तजत हंस अरु चिगत चकोर ॥१॥तापर एक अधिक छबि उपजत ऊपर भ्रमर करत घनघोर ॥सूरदास प्रभु अति सकुचाने रविशशि प्रकटत एकहि ठोर...
रे मन कृष्ण नाम कहि लीजैगुरु के बचन अटल करि मानहिं, साधु समागम कीजैपढिए गुनिए भगति भागवत, और कथा कहि लीजैकृष्ण नाम बिनु जनम बादिही, बिरथा काहे जीजैकृष्ण नाम रस बह्यो जात है, तृषावंत है...
ऐसो पूत देवकी जायो।चारों भुजा चार आयुध धरि, कंस निकंदन आयो ॥१॥भरि भादों अधरात अष्टमी, देवकी कंत जगायो।देख्यो मुख वसुदेव कुंवर को, फूल्यो अंग न समायो॥२॥अब ले जाहु बेगि याहि गोकुलबहोत भाँति समझायो।हृदय लगाय चूमि...
जागिये ब्रजराज कुंवर कमल कोश फूले।कुमुदिनी जिय सकुच रही, भृंगलता झूले॥१॥तमचर खग रोर करत, बोलत बन मांहि।रांभत गऊ मधुर नाद, बच्छन हित धाई॥२॥विधु मलीन रवि प्रकास गावत व्रजनारी।’सूर’ श्री गोपाल उठे आनन्द मंगलकारी॥३॥