शाम नृपती मुरली भई रानी ॥ध्रु०॥
बन ते ल्याय सुहागिनी किनी । और नारी उनको न सोहानी ॥१॥
कबहु अधर आलिंगन कबहु । बचन सुनन तनु दसा भुलानी ॥२॥
सुरदास प्रभू तुमारे सरनकु । प्रेम नेमसे मिलजानी ॥३॥

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