व्रजमंडल आनंद भयो प्रगटे श्री मोहन लाल।
ब्रज सुंदरि चलि भेंट लें हाथन कंचन थार॥
जाय जुरि नंदराय के बंदनवार बंधाय।
कुंकुम के दिये साथीये सो हरि मंगल गाय॥
कान्ह कुंवर देखन चले हरखित होत अपार।
देख देख व्रज सुंदर अपनों तन मन वार॥
जसुमति लेत बुलाय के अंबर दिये पहराय।
आभूषण बहु भांति के दिये सबन मनभाय॥
दे आशीष घर को चली, चिरजियो कुंवर कन्हाई।
सूर श्याम विनती करी, नंदराय मन भाय॥
Author: Unknown Claim credit