
सबसे ऊँची प्रेम सगाई।
सबसे ऊँची प्रेम सगाई।दुर्योधन की मेवा त्यागी, साग विदुर घर पाई॥जूठे फल सबरी के खाये बहुबिधि प्रेम लगाई॥प्रेम के बस नृप सेवा कीनी आप बने हरि नाई॥राजसुयज्ञ युधिष्ठिर कीनो तामैं जूठ उठाई॥प्रेम के बस अर्जुन-रथ...
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सबसे ऊँची प्रेम सगाई।दुर्योधन की मेवा त्यागी, साग विदुर घर पाई॥जूठे फल सबरी के खाये बहुबिधि प्रेम लगाई॥प्रेम के बस नृप सेवा कीनी आप बने हरि नाई॥राजसुयज्ञ युधिष्ठिर कीनो तामैं जूठ उठाई॥प्रेम के बस अर्जुन-रथ...
माधव कत तोर करब बड़ाई।उपमा करब तोहर ककरा सों कहितहुँ अधिक लजाई॥अर्थात् भगवान् की तुलना किसी से संभव नहीं है। पायो परम पदु गातसबै दिन एक से नहिं जात।सुमिरन भजन लेहु करि हरि को जों...
कहां लौं बरनौं सुंदरताई।खेलत कुंवर कनक-आंगन मैं नैन निरखि छबि पाई॥कुलही लसति सिर स्याम सुंदर कैं बहु बिधि सुरंग बनाई।मानौ नव धन ऊपर राजत मघवा धनुष चढ़ाई॥अति सुदेस मन हरत कुटिल कच मोहन मुख बगराई।मानौ...
बदन मनोहर गातसखी री कौन तुम्हारे जात।राजिव नैन धनुष कर लीन्हे बदन मनोहर गात॥लज्जित होहिं पुरबधू पूछैं अंग अंग मुसकात।अति मृदु चरन पंथ बन बिहरत सुनियत अद्भुत बात॥सुंदर तन सुकुमार दोउ जन सूर किरिन कुम्हलात।देखि...
अब मेरी राखौ लाज, मुरारी।संकट में इक संकट उपजौ, कहै मिरग सौं नारी॥और कछू हम जानति नाहीं, आई सरन तिहारी।उलटि पवन जब बावर जरियौ, स्वान चल्यौ सिर झारी॥नाचन-कूदन मृगिनी लागी, चरन-कमल पर वारी।सूर स्याम प्रभु...
रतन-सौं जनम गँवायौहरि बिनु कोऊ काम न आयौ।इहि माया झूठी प्रपंच लगि, रतन-सौं जनम गँवायौ॥कंचन कलस, बिचित्र चित्र करि, रचि-पचि भवन बनायौ।तामैं तैं ततछन ही काढ़यौ, पल भर रहन न पायौ॥हौं तब संग जरौंगी, यौं...
अब मैं नाच्यौ बहुत गुपाल।काम-क्रोध कौ पहिरि चोलना, कंठ बिषय की माल॥महामोह के नूपुर बाजत, निंदा सबद रसाल।भ्रम-भोयौ मन भयौ, पखावज, चलत असंगत चाल॥तृष्ना नाद करति घट भीतर, नाना विधि दै ताल।माया कौ कटि फेंटा...
जनम अकारथ खोइसिरे मन, जनम अकारथ खोइसि।हरि की भक्ति न कबहूँ कीन्हीं, उदर भरे परि सोइसि॥निसि-दिन फिरत रहत मुँह बाए, अहमिति जनम बिगोइसि।गोड़ पसारि परयो दोउ नीकैं, अब कैसी कहा होइसि॥काल जमनि सौं आनि बनी...
अजहूँ चेति अचेतसबै दिन गए विषय के हेत।तीनौं पन ऐसैं हीं खोए, केश भए सिर सेत॥आँखिनि अंध, स्त्रवन नहिं सुनियत, थाके चरन समेत।गंगा-जल तजि पियत कूप-जल, हरि-तजि पूजत प्रेत॥मन-बच-क्रम जौ भजै स्याम कौं, चारि पदारथ...
आनि सँजोग परैभावी काहू सौं न टरै।कहँ वह राहु, कहाँ वे रबि-ससि, आनि सँजोग परै॥मुनि वसिष्ट पंडित अति ज्ञानी, रचि-पचि लगन धरै।तात-मरन, सिय हरन, राम बन बपु धरि बिपति भरै॥रावन जीति कोटि तैंतीसा, त्रिभुवन-राज करै।मृत्युहि...
रे मन मूरख, जनम गँवायौ।करि अभिमान विषय-रस गीध्यौ, स्याम सरन नहिं आयौ॥यह संसार सुवा-सेमर ज्यौं, सुन्दर देखि लुभायौ।चाखन लाग्यौ रुई गई उडि़, हाथ कछू नहिं आयौ॥कहा होत अब के पछिताऐं, पहिलैं पाप कमायौ।कहत सूर भगवंत...
मन धन-धाम धरेमोसौं पतित न और हरे।जानत हौ प्रभु अंतरजामी, जे मैं कर्म करे॥ऐसौं अंध, अधम, अबिबेकी, खोटनि करत खरे।बिषई भजे, बिरक्त न सेए, मन धन-धाम धरे॥ज्यौं माखी मृगमद-मंडित-तन परिहरि, पूय परे।त्यौं मन मूढ़ बिषय-गुंजा...