राम राम रटते रहो
तर्ज- तुम तो ठहरे परदेसी

राम राम रटते रहो, राम बन जावोगे।
अन्त समय राम के, राम धाम जावोगे।।

वेद भी न जान सके, ईश्वर की प्रभुताई को।
राम भी कहि न सके, राम नाम की बड़ाई को।।
फिर तुम भला राम का, पार कैसे पावोगे।
राम राम………….

राम आत्मा राम है, हर मन मन्दिर में बसे।
हरपल कृपा राम की, भीतर बाहर बसे।।
दर्शन तो तब होगा, जब उसे बुलावोगे।
राम राम………….

मानव धर्म राम का मर्यादा अवतार है।
दुनिया में श्री राम की, हो रही जय जयकार है।।
जीवन जीयो राम सा, राम कहिलावोगे।
राम राम………….

जीवन मरण सब का, श्रीराम के हाथ है।
जीवन के हर मोड़ पर, श्री राम का साथ है।।
सम्भल सम्भल चलना, वरना पछताओगे।
राम राम………….

रस मीठा है नाम का पी लो, जीभर कर पी लो।
रामदास बनकर ‘‘मधुप’’ जी लो जीभर जी लो।।
कर लो भजन राम का, सब सुख पावोगे।
राम राम………….।

Author: सुप्रसिद्ध लेखक एवं संकीर्तनाचार्य श्री केवल कृष्ण ❛मधुप❜ (मधुप हरि जी महाराज) अमृतसर

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