!! दोहा !!
जयकाली कलिमलहरण,
महिमा अगम अपार !
महिष मर्दिनी कालिका,
देहु अभय अपार ॥
!! चौपाई !!
!! अरि मद मान मिटावन हारी ।
मुण्डमाल गल सोहत प्यारी ॥
!! अष्टभुजी सुखदायक माता ।
दुष्टदलन जग में विख्याता ॥
!! भाल विशाल मुकुट छवि छाजै ।
कर में शीश शत्रु का साजै ॥
!! दूजे हाथ लिए मधु प्याला ।
हाथ तीसरे सोहत भाला ॥4॥
!! चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे ।
छठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे ॥
!! सप्तम करदमकत असि प्यारी ।
शोभा अद्भुत मात तुम्हारी ॥
!! अष्टम कर भक्तन वर दाता ।
जग मनहरण रूप ये माता ॥
!! भक्तन में अनुरक्त भवानी ।
निशदिन रटें ॠषी-मुनि ज्ञानी ॥8॥
!! महशक्ति अति प्रबल पुनीता ।
तू ही काली तू ही सीता ॥
!! पतित तारिणी हे जग पालक ।
कल्याणी पापी कुल घालक ॥
!! शेष सुरेश न पावत पारा ।
गौरी रूप धर्यो इक बारा ॥
!! तुम समान दाता नहिं दूजा ।
विधिवत करें भक्तजन पूजा ॥
!! रूप भयंकर जब तुम धारा ।
दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा ॥
!! नाम अनेकन मात तुम्हारे ।
भक्तजनों के संकट टारे ॥
!! कलि के कष्ट कलेशन हरनी ।
भव भय मोचन मंगल करनी ॥
!! महिमा अगम वेद यश गावैं ।
नारद शारद पार न पावैं ॥
!! भू पर भार बढ्यौ जब भारी ।
तब तब तुम प्रकटीं महतारी ॥
!! आदि अनादि अभय वरदाता ।
विश्वविदित भव संकट त्राता ॥
!! कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा ।
उसको सदा अभय वर दीन्हा ॥
!! ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा ।
काल रूप लखि तुमरो भेषा ॥
!! कलुआ भैंरों संग तुम्हारे ।
अरि हित रूप भयानक धारे ॥
!! सेवक लांगुर रहत अगारी ।
चौसठ जोगन आज्ञाकारी ॥
!! त्रेता में रघुवर हित आई ।
दशकंधर की सैन नसाई ॥
!! खेला रण का खेल निराला ।
भरा मांस-मज्जा से प्याला ॥
!! रौद्र रूप लखि दानव भागे ।
कियौ गवन भवन निज त्यागे ॥
!! तब ऐसौ तामस चढ़ आयो ।
स्वजन विजन को भेद भुलायो ॥
!! ये बालक लखि शंकर आए ।
राह रोक चरनन में धाए ॥
!! तब मुख जीभ निकर जो आई ।
यही रूप प्रचलित है माई ॥
!! बाढ्यो महिषासुर मद भारी ।
पीड़ित किए सकल नर-नारी ॥
!! करूण पुकार सुनी भक्तन की ।
पीर मिटावन हित जन-जन की ॥
!! तब प्रगटी निज सैन समेता ।
नाम पड़ा मां महिष विजेता ॥
!! शुंभ निशुंभ हने छन माहीं ।
तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं ॥
!! मान मथनहारी खल दल के ।
सदा सहायक भक्त विकल के ॥
!! दीन विहीन करैं नित सेवा ।
पावैं मनवांछित फल मेवा ॥
!! संकट में जो सुमिरन करहीं ।
उनके कष्ट मातु तुम हरहीं ॥
!! प्रेम सहित जो कीरति गावैं ।
भव बन्धन सों मुक्ती पावैं ॥
!! काली चालीसा जो पढ़हीं ।
स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं ॥
!! दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा ।
केहि कारण मां कियौ विलम्बा ॥
!! करहु मातु भक्तन रखवाली ।
जयति जयति काली कंकाली ॥
!! सेवक दीन अनाथ अनारी ।
भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी ॥
!! दोहा !!
प्रेम सहित जो करे,
काली चालीसा पाठ !
तिनकी पूरन कामना,
होय सकल जग ठाठ ॥
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