श्री एकलिंग महादेव चालीसा
दोहा:
जय जय जय श्री एकलिंग, करहु कृपा अनुराग।
संत जनन के काज में, हरहु सकल परिताप॥
चालीसा:
जय श्री एकलिंग सुखदायी।
जय त्रिपुरारी दुष्ट विनाशाई॥
मेवाड़ धाम विराजत भारी।
महिमा अगम अनंत अपारी॥
चतुर्भुज रूप विराजे दयाला।
भक्तन के तुम हो रखवाला॥
सिंह वाहिनी ध्वजा उचाई।
महिमा कहि न सकै गोसाई॥
नील कंठ सुशोभित गले में।
गंगाजल शोभित है जटा में॥
शूल, डमरू, धनुष, कटारी।
दुष्ट दलन करुणा हितकारी॥
नंदी वाहन साथ तुम्हारा।
सदा सहाय भक्तन दुखहारा॥
सूरज चंद्र हो तुम अविनाशी।
तुमसे त्रस्त जगत की वासी॥
मेवाड़ राजभक्ति के कारण।
तुमसे पायो राज्य महान॥
जो कोई तुमको ध्यान लगावे।
संकट कोई निकट ना आवे॥
महा योगी, महा तपधारी।
भक्तन के तुम पालन कारी॥
सर्व सिद्धि दाता तुम हो।
शरण पड़े दुख अंत हो॥
सकल मनोरथ पूरण होई।
जो नर भजे प्रेम से कोई॥
निशिदिन ध्यान जपे जो प्रानी।
हो भवसागर से वो ज्ञानी॥
दोहा:
यह चालीसा जो कोई गावे,
सकल मनोरथ फल वह पावे॥
भक्त सहित नमन कर जोई,
एकलिंग सुख संपदा होई॥
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