श्री जगन्नाथ चालीसा
दोहा:
जय जय जय जगन्नाथ प्रभु, शरण तिहारो जासु।
सब विधि पुरवहु आशिष, हरहु सकल संत्रास॥
चालीसा:
जय जगन्नाथ जगत के स्वामी,
भवसागर के तुम ही ठामी॥
नीलांचल में दिव्य विहारी,
सुभद्रा बलभद्र तुम्हारी॥
महिमा तेरी अपरंपारा,
सर्व सृष्टि के पालनहारा॥
रत्न सिंहासन शोभा भारी,
भक्तन पर तुम कृपा उचारी॥
दीन-दुखी के संकट हारी,
कृपा दृष्टि सब पर न्यारी॥
हरि हरि नाम सदा उचारा,
पापी भी तर जाये तारा॥
अंध भक्त जब पुकारे,
सहज कृपा तुम ही उबारे॥
जग में सबको राह दिखाओ,
भव भय से सबको बचाओ॥
हरि-हरि कहते जो जन प्यारे,
तिनके काज तुमही संवारे॥
चरण शरण में जो भी आये,
संकट कभी नहीं सताए॥
अमित कृपा दृष्टि है न्यारी,
सब संत करें जय जयकारी॥
दोहा:
जगन्नाथ प्रभु दीन दयाला,
रखो शरण अपने प्रतिपाला॥
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