श्री केदारनाथ चालीसा
दोहा:
केदार गिरि के शिखर पर, विराजे नाथ महान।
करहु कृपा हे शंभु शिव, दुखहारी भगवान॥
चालीसा:
जय केदार गिरि नायक, जय शिव शंकर धाम।
सकल विश्व के स्वामी, त्रिभुवन के तुम राम॥
हिमगिरि पर सुशोभित, ज्योतिर्मय शिवलिंग।
दर्शन मात्र से मिटे, पाप ताप के सिंधु॥
नंदी पर विराजे, गंगाजल शिर धारे।
त्रिशूल, डमरू, माला, कर में हैं प्यारे॥
रक्षक भक्तन के तुम, संकट हरन हार।
जो सुमिरन करे तिहारे, पावे भव पार॥
पांडव तुमको ध्यावे, कठिन व्रत जब कीन्ह।
प्रकट भये तब शिव, भक्तन के मन लीन्ह॥
जटा से गंगा बहावे, चंद्रमा शीश सजाए।
दिव्य रूप धारण करके, भक्तन को सुखदाए॥
ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र, सनकादिक मुनीश।
नित वंदन करते शिव, हैं सदा जगदीश॥
दुख हरते भव भय हारी, सबके कष्ट मिटावे।
शरण पड़े जो कोई, नाथ उन्हें अपनावे॥
दोहा:
केदारनाथ जो गावे, शिव कृपा वो पावे।
सुख-शांति घर आवे, भवसागर से तर जावे॥
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