श्री वामन चालीसा
दोहा:
जय जय श्री वामन विभु, त्रिभुवन के आधार।
भक्तन के तुम पालक, संकट के हनकार॥
चालीसा:
जय वामन रूप धरन भगवान।
अद्भुत लीला अपरंपार महान॥
अदिति नंदन रूप सुहावा,
तीन पग में जगत समावा॥
बालक रूप विराजे गोरा,
करत प्रकट निज माया डोरा॥
याचक बन कर द्वार खटावो,
दान लिए बलि से प्रभु भावो॥
तीन पग भूमि मांगी साधा,
राजा बलि मन अति उत्साहा॥
प्रभु ने तब ली रूप विराट,
तीनों लोक समाए साथ॥
प्रथम पग में नभ को लीन,
दूसरे में पृथ्वी जमीन॥
तीसरे पग को खोजे ठौर,
बलि ने शीश दिया सिर धौर॥
दानवीर बलि देख विनय,
प्रभु ने दिया पाताल गमन॥
भक्त वत्सल प्रभु सुखकारी,
रखते सदा भक्त हितकारी॥
जो नर गावे चालीसा,
पावे मोक्ष करे जग जीता॥
दोहा:
वामन रूप धर्यो भगवान,
लीला अपरंपार महान॥
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