श्री वराह चालीसा
दोहा:
जय जय वराह देव प्रभु, भूधर रूप विशाल।
हरहु संकट दास की, करहु कृपा कृपाल॥
चालीसा:
जय जय वराह रूप धारी।
भक्तन के तुम हो हितकारी॥
जब जब धरती डोलन लागी,
अधर्म बढ़ा, त्रास अनुरागी॥
हिरण्याक्ष जब दैत्य प्रचंडा,
धरा डुबाय महा अभिमंडा॥
तब प्रभु तुम वराह स्वरूपा,
धरि धरणि राखी निज अनुपा॥
नख कराला महा विकराला,
महा प्रभावी, दुष्ट कराला॥
पाताल बीच दैत्य जब आया,
हिरण्याक्ष को मार गिराया॥
धरणि उठाई कर मुस्काई,
लीला अपरंपार दिखाई॥
शेष सुत संग कीन्ह प्रह्लादा,
भक्तन को दीनदयाल द्रढ़ वादा॥
जो नर भक्ति सहित गुण गावे,
भवसागर से पार करावे॥
दोहा:
वराह देव की कृपा, संकट दूर करे।
जो जन श्रद्धा से गावे, भवसागर ना टरे॥
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