( गुरु बिन ज्ञान न उपजे,गुरु बिन मिटे न भेद,
गुरु बिन संशय न मिटे,जय जय जय गुरु देव॥ )

एक निरंजन ध्याऊं गुरुजी मैं तो एक निरंजन ध्याऊं,
दुजे के संग नहीं जाऊं गुरुजी, मैं तो एक निरंजन ध्याऊं,
एक निरंजन ध्याऊं…..

( आत्म भ्रांति सम रोग नहीं,सदगुरु वैद्य सुजान,
गुरु आज्ञा सम पथ्य नहीं,औषध विचार ध्यान॥ )

दुःख न जानू दर्द न जानू, ना कोई वैद्य बुलाऊं,
सदगुरु वैद्य मिले अविनाशी,
वाकु ही नाडी बताऊं, गुरुजी मैं तो एक निरंजन ध्याऊं…..

( तीरथ का है एक फल, संत मिले फल चार,
सदगुरु मिले अनंत फल, कहत कबीर विचार॥ )

गंगा न जाऊं यमुना न जाऊं, ना कोई तीरथ नहाऊं,
अड़सठ तीरथ है घट माही,
वाही में मल मल नहाऊँ, गुरुजी मैं तो एक निरंजन ध्याऊं…..

( सात समंद की मसी करूं, लेखनी सब बनराय,
धरती सब कागज करूं, गुरु गुण लिखा न जाय॥ )

पत्ती न तोडूं पत्थर न फोडूं, ना कोई देवल जाऊं,
बन बन की मैं लकड़ी न तोडूं,
ना कोई झाड़ सताऊं, गुरुजी मैं तो एक निरंजन ध्याऊं…..

दोहा=(1)सम दृष्टि सदगुरु किया, मेटा भरम विकार।
जहां देखो तहां एक ही,साहिब को दीदार।।

(2) बिना नयन पावे नहीं बिना नयन की बात।
सेवे सदगुरु के चरण, सो पावे साक्षात।।

कहे जन सिंगा सुनो भाई साधु, ज्योति मे ज्योति मिलाऊं,
सदगुरु की मैं शरण गए से,
आवागमन मिटाऊं,गुरुजी मैं तो एक निरंजन ध्याऊं…….

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