मेरे गूर जी का अद्भुत शिवाला जो भी आये वो जाए निहाला.

जब दुभ रही थी कश्ती मेरी तब मिल न रहा था किनारा,
मैंने देखा गुरु जी का द्वारा,
मुझ को मिल गया तेरा सहारा तेरे दर मिलता प्रारेम का निवाला
मेरे गूर जी का अद्भुत शिवाला जो भी आये वो जाए निहाला.

डरती मैं गुरु जी इस दुनिया में
तेरे रहमत ने अपना बनाया,
मर गई थी मैं अपनी नजर में
तूने जीने का शोंक जगाया,
भटके राही कोई मिलता उजाला,
मेरे गूर जी का अद्भुत शिवाला जो भी आये वो जाए निहाला.

खुशियाँ मिलती है तेरे दर पे आके,
नही ये मिलती कही और जाके याहा मिलता है खुशियों का खजाना,
तभी तो आता है पूरा जमाना,
मेरे गूर जी का अद्भुत शिवाला जो भी आये वो जाए निहाला

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